गद्यांश पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
129. निम्नलिखितेषु कम्बुग्रीवस्य मित्रं कः आसीत् ?
1. स्नेहकोटिः
2. संकटः
3. अस्तमयः
4. जाम्बालशेषः
Click To Show Answer
निम्नलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानां उत्तराणि यथोचितं विकल्पं चित्वा देयानि –
अस्ति कस्मिंश्चित् जलाशये कम्बुग्रीवो नाम कच्छपःI तस्य च संकट विकटनाम्नी मित्रे हंसजातीये परमस्नेहकोटिमाश्रिते नित्यमेव सरस्तीरमासाद्य तेन सह अनेकदेवर्षिमहर्षीणां कथाः कृत्वा अस्तमय वेलायां स्वनीडसंश्रयं कुरुतःI अथ गच्छता कालेन अवृष्टिवशात् सरः शनैः शनैः शोषमगमत्I ततस्तद्दुःखदुःखितौ तौ ऊचतुः “भो मित्र! जम्बालशेषमेतत्सरः सञ्जातं तत्कथं भवान् भविष्यतीति व्याकुलत्वं नो हृदि वर्त्तते”। तच्छ्रुत्वा कम्बुग्रीव आह “भोः ! साम्प्रतं न अस्ति अस्माकं जीवितव्यं जलाभावात् । तथापि उपायश्चिन्त्यतामिति उक्तञ्च –
तत् आनीयतां काचित् दृढरज्जुर्लघुकाष्ठं वा, अन्विष्यतां च प्रभूतजलसनाथं सरो येन मया मध्यप्रदेशे दन्तैर्गृहीते सति युवां कोटिभागयोः तत्काष्ठं मया सहितं संगृह्य तत्सरो नयथः” । तौ ऊचतुः, – “भो मित्र! एवं करिष्यावः परम भवता मौनव्रतेन स्थातव्यं, नो चेत् तव काष्ठात् पातो भविष्यति”। तथा अनुष्ठिते, गच्छता कम्बुग्रीवेण अधोभागव्यवस्थितं कञ्चित् पुरमालोकितं तत्र ये पौरास्ते तथा नीयमानं विलोक्य सविस्मयमिदमूचुः,- “अहो! चक्राकारं किमपि पक्षिभ्यां नीयते, पश्यत पश्यत”। अथ तेषां कोलाहलमाकर्ण्य कम्बुग्रीव आह – “भो ! किमेष कोलाहलः इति वक्तुमना अर्धोक्ते पतितः पौरः खण्डशः कृतश्च। अतोऽहं ब्रवीमि – “सुहृदां हितकामानाम्” इतिI
गद्यांश का अर्थ हिन्दी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंअस्ति कस्मिंश्चित् जलाशये कम्बुग्रीवो नाम कच्छपःI तस्य च संकट विकटनाम्नी मित्रे हंसजातीये परमस्नेहकोटिमाश्रिते नित्यमेव सरस्तीरमासाद्य तेन सह अनेकदेवर्षिमहर्षीणां कथाः कृत्वा अस्तमय वेलायां स्वनीडसंश्रयं कुरुतःI अथ गच्छता कालेन अवृष्टिवशात् सरः शनैः शनैः शोषमगमत्I ततस्तद्दुःखदुःखितौ तौ ऊचतुः “भो मित्र! जम्बालशेषमेतत्सरः सञ्जातं तत्कथं भवान् भविष्यतीति व्याकुलत्वं नो हृदि वर्त्तते”। तच्छ्रुत्वा कम्बुग्रीव आह “भोः ! साम्प्रतं न अस्ति अस्माकं जीवितव्यं जलाभावात् । तथापि उपायश्चिन्त्यतामिति उक्तञ्च –
तत् आनीयतां काचित् दृढरज्जुर्लघुकाष्ठं वा, अन्विष्यतां च प्रभूतजलसनाथं सरो येन मया मध्यप्रदेशे दन्तैर्गृहीते सति युवां कोटिभागयोः तत्काष्ठं मया सहितं संगृह्य तत्सरो नयथः” । तौ ऊचतुः, – “भो मित्र! एवं करिष्यावः परम भवता मौनव्रतेन स्थातव्यं, नो चेत् तव काष्ठात् पातो भविष्यति”। तथा अनुष्ठिते, गच्छता कम्बुग्रीवेण अधोभागव्यवस्थितं कञ्चित् पुरमालोकितं तत्र ये पौरास्ते तथा नीयमानं विलोक्य सविस्मयमिदमूचुः,- “अहो! चक्राकारं किमपि पक्षिभ्यां नीयते, पश्यत पश्यत”। अथ तेषां कोलाहलमाकर्ण्य कम्बुग्रीव आह – “भो ! किमेष कोलाहलः इति वक्तुमना अर्धोक्ते पतितः पौरः खण्डशः कृतश्च। अतोऽहं ब्रवीमि – “सुहृदां हितकामानाम्” इतिI
एक जलाशय में कंबुग्रीव नाम का एक कछुआ था। उसके संकटविकट नामक हंस मित्र थे, जिनपर उसका परम स्नेह था, वह हमेशा झील के किनारे पर विभिन्न कहानियों से उनके साथ समय बिताता था और सूर्यास्त के समय उनके घोंसले में शरण लेता था। समय बीतने के साथ झील धीरे-धीरे सूखे के कारण सूख गई तब दुखी दोनों हंसों ने कहा, “मेरे दोस्त! यह झील केवल कीचड की झील बन गई है, और हमारे दिल में चिंता है कि आप अपने जीवन को कैसे बनाए रखेंगे। यह सुनकर कंबुग्रीव ने कहा, “भाई, पानी की कमी के कारण हमारे पास इस समय रहने के लिए कुछ भी नहीं है। तथा, समाधान के बारे में सोचें।
फिर कोई मजबूत रस्सी या लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा लेकर आएँ। और ऐसा सरोवर ढूँढ़ो जिसमें पानी अधिक हो, ताकि जब मैं उसे अपने दाँतों से बीच में पकड़ लूँ, तब तुम उस लकड़ी को मेरे साथ दो भागों में बटोरकर झील तक ले जा सको। उन्होंने कहा, “मेरे दोस्त, हम ऐसा करेंगे। लेकिन आपको चुप रहना चाहिए, या आप अपनी लकड़ी से गिर जाएंगे। ऐसा करते समय, कम्बुग्रीव ने नीचे एक छोटा सा शहर देखा। वहाँ जो नगरवासी थे, वह उसे इस प्रकार देखकर आश्चर्यचकित हो कर कहने लगे, “अरे, पक्षि चक्र के आकार का कुछ ले जा रहे हैं।
तब उनका शोर सुनकर कम्बुग्रीव ने कहा, “अरे! यह शोर क्या है?” यह बोलने की इच्छा करता हुआ वह आधा ही वाक्य बोलकर नीचे गिरा और नागरिकों द्वारा उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।
फिर कोई मजबूत रस्सी या लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा लेकर आएँ। और ऐसा सरोवर ढूँढ़ो जिसमें पानी अधिक हो, ताकि जब मैं उसे अपने दाँतों से बीच में पकड़ लूँ, तब तुम उस लकड़ी को मेरे साथ दो भागों में बटोरकर झील तक ले जा सको। उन्होंने कहा, “मेरे दोस्त, हम ऐसा करेंगे। लेकिन आपको चुप रहना चाहिए, या आप अपनी लकड़ी से गिर जाएंगे। ऐसा करते समय, कम्बुग्रीव ने नीचे एक छोटा सा शहर देखा। वहाँ जो नगरवासी थे, वह उसे इस प्रकार देखकर आश्चर्यचकित हो कर कहने लगे, “अरे, पक्षि चक्र के आकार का कुछ ले जा रहे हैं।
तब उनका शोर सुनकर कम्बुग्रीव ने कहा, “अरे! यह शोर क्या है?” यह बोलने की इच्छा करता हुआ वह आधा ही वाक्य बोलकर नीचे गिरा और नागरिकों द्वारा उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।
129. निम्नलिखितेषु कम्बुग्रीवस्य मित्रं कः आसीत् ?
1. स्नेहकोटिः
2. संकटः
3. अस्तमयः
4. जाम्बालशेषः
Click To Show Answer
Answer – (2)