139. काचिद् अध्यापिका स्वकक्षायां निम्नलिखितं पाठं पठति। सा छात्रान् कथयति यत् ते पाठं सावधानतया शृणुयु:, तदा तम् यथानिकटमनुलिखन्तु, न शब्दश:। इयं पद्धति: किं कथ्यते ? ‘‘मानवानां विकास: लक्षाधिकवर्षावधौ सञ्जात:। शरीररचना कीदृशी एव स्यात् परन्तु अयं सामान्य- उत्पाद: नास्ति। अयं कठोरवायुमण्डलीय परिस्थितीन् तीत्र्वा आगतोऽस्ति। तथा च शुभाशुभकालविशिष्टं पर्यावरणमपि आसीत् । अत: हर्षस्य विषयोऽयं यत् वयं तस्मिन् काले जीवाम: यस्मिन् अधिकानि सुखानि सौविध्यानि च उपलब्धानि च सन्ति’’।
1. परिच्छेद-श्रुतलेख:
2. आधार-श्रुतलेख:
3. ऊध्र्व-अध: प्रक्रिया
4. अध:-ऊध्र्व प्रक्रिया
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Answer – (3)
कोई अध्यापिका अपनी कक्षा में उपर्युक्त पाठ को पढ़ती हुई छात्रों से कहती हैं कि यदि आप सभी सम्पूर्ण पाठ को सावधान मन से सुनते हैं, तो आप सभी को निकट वाची शब्द (समानार्थी) का ज्ञान कर सकेंगे। यह प्रक्रिया ऊध्र्व-अध: प्रक्रिया के अन्तर्गत आती है। मानव के विकास में एक लाख से अधिक वर्ष व्यतीत हो गए हैं। शरीर रचना किस प्रकार है, यह सामान्य उत्पाद नहीं है। आप कठोर वायुमण्डल में समाहित है। तथा शुभ एवं अशुभ के समय विशिष्ट पर्यावरण में भी स्थिति है। अत: यह हर्ष का विषय होना चाहिए कि हम सभी उस समय में जीवन को सुख पूर्वक बिता रहे हैं जिसमें सुख-सुविधा का भरपूर साधन उपलब्ध है।
कोई अध्यापिका अपनी कक्षा में उपर्युक्त पाठ को पढ़ती हुई छात्रों से कहती हैं कि यदि आप सभी सम्पूर्ण पाठ को सावधान मन से सुनते हैं, तो आप सभी को निकट वाची शब्द (समानार्थी) का ज्ञान कर सकेंगे। यह प्रक्रिया ऊध्र्व-अध: प्रक्रिया के अन्तर्गत आती है। मानव के विकास में एक लाख से अधिक वर्ष व्यतीत हो गए हैं। शरीर रचना किस प्रकार है, यह सामान्य उत्पाद नहीं है। आप कठोर वायुमण्डल में समाहित है। तथा शुभ एवं अशुभ के समय विशिष्ट पर्यावरण में भी स्थिति है। अत: यह हर्ष का विषय होना चाहिए कि हम सभी उस समय में जीवन को सुख पूर्वक बिता रहे हैं जिसमें सुख-सुविधा का भरपूर साधन उपलब्ध है।