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निम्नलिखित गद्यांश को पढकर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए:
दर्शन वस्तुतः अपने आप को जानने की जीवन पर्यंत चलने वाली शिक्षा है। दर्शन का तात्पर्य ही देखना है। यहाँ देखने का अर्थ जानना ही है। आत्मा क्या है? आत्म- ज्ञान क्या है? यह कैसे और किसे होता है? यह सब विवाद का विषय हो सकता है। परंतु आत्म- ज्ञान को आदर्श मानकर निरंतर आत्म- निरीक्षण करते रहने से व्यक्ति मानव चेतना के उत्तरोत्तर विकासमान उच्च से उच्चतर सोपानों को अवश्य प्राप्त करता है। यह निर्विवाद है। हम प्रायः आत्म -प्रवंचना में जीते हैं। हम यथार्थ में होते कुछ और हैं तथा दिखाई देते हैं कुछ और। अपने दोषों को पहचानने और स्वीकार करने की अपेक्षा उनके औचित्य को सिद्ध करने में सारी शक्ति लगा देते हैं। व्यक्ति यदि असत्य भाषण को दोष न मानकर सफलता का सूत्र मानता है तो इसे दूर करने की अपेक्षा ऐसा तरीका सीखना पसंद करेगा जिससे वह अधिक कुशलता से झूठ बोल सके। आत्म- दर्शन अपने दोष को दोष रूप में और गुण को गुण रूप में स्वीकार करना है। दोष या दुर्गुण समाज में निंदनीय और अस्वीकार्य होते हैं इसलिए अपने दुर्गुणों को स्वीकार करने में साहस की आवश्यकता होती है। दुर्गुण को व्यक्तित्व की कमी के रूप में स्वीकार करने पर उसे दूर करने की गुंजाइश बराबर बनी रहती है। अतः आत्म- दर्शन हमें आंतरिक विकास की ओर अग्रसर करता है। जीवन दर्शन का सच्चा शिक्षक हमारा परिवेश है।
दर्शन वस्तुतः अपने आप को जानने की जीवन पर्यंत चलने वाली शिक्षा है। दर्शन का तात्पर्य ही देखना है। यहाँ देखने का अर्थ जानना ही है। आत्मा क्या है? आत्म- ज्ञान क्या है? यह कैसे और किसे होता है? यह सब विवाद का विषय हो सकता है। परंतु आत्म- ज्ञान को आदर्श मानकर निरंतर आत्म- निरीक्षण करते रहने से व्यक्ति मानव चेतना के उत्तरोत्तर विकासमान उच्च से उच्चतर सोपानों को अवश्य प्राप्त करता है। यह निर्विवाद है। हम प्रायः आत्म -प्रवंचना में जीते हैं। हम यथार्थ में होते कुछ और हैं तथा दिखाई देते हैं कुछ और। अपने दोषों को पहचानने और स्वीकार करने की अपेक्षा उनके औचित्य को सिद्ध करने में सारी शक्ति लगा देते हैं। व्यक्ति यदि असत्य भाषण को दोष न मानकर सफलता का सूत्र मानता है तो इसे दूर करने की अपेक्षा ऐसा तरीका सीखना पसंद करेगा जिससे वह अधिक कुशलता से झूठ बोल सके। आत्म- दर्शन अपने दोष को दोष रूप में और गुण को गुण रूप में स्वीकार करना है। दोष या दुर्गुण समाज में निंदनीय और अस्वीकार्य होते हैं इसलिए अपने दुर्गुणों को स्वीकार करने में साहस की आवश्यकता होती है। दुर्गुण को व्यक्तित्व की कमी के रूप में स्वीकार करने पर उसे दूर करने की गुंजाइश बराबर बनी रहती है। अतः आत्म- दर्शन हमें आंतरिक विकास की ओर अग्रसर करता है। जीवन दर्शन का सच्चा शिक्षक हमारा परिवेश है।
95. अनुच्छेद के आधार पर कौन साहसी है?
1. अपने दोषों को स्वीकार करने वाला
2. अपने दोषों को छिपाने वाला
3. अपने गुणों का वर्णन करने वाला
4. अपने गुणों को छिपाने वाला
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Answer – (1)