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चित्रों की भाषा ऐसी स्वच्छंदता, उनमुक्तता प्रदान करती है कि ‘पढ़ने’ वाला अपने कथ्य को स्वयं गढ़ता है। जहां बंधन न हो वहीं स्वच्छंदता और सृजनात्मक अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं इसलिए चित्रात्मक किताबें बच्चों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रही हैं. आँगनबाड़ी के बच्चों के साथ यह अनुभव भी रहा है कि रंगीन चित्रात्मक किताबों को देखते ही बच्चों के भीतर उसे छूने, पकड़ने और उसके भीतर की दुनिया में झाँकने के लिए पन्ने दर पन्ने पलटने की उत्कट इच्छा बच्चों को सक्रिय बना देती है। पढ़ना शुरू करने की प्रक्रिया का पहला सोपान यही है कि हम किताबों के प्रति आकर्षण महसूस करें और उन्हें खोलकर देखने की तीव्र इच्छा भी हो। एक बार किताब खुलते ही उसमें मौजूद अवधारणाओं का संसार भी धीरे-धीरे खुलने लगता है। दरअसल, बच्चों की प्रतिक्रिया ही इन अवधारणाओं के बनने का बनना प्रमाण है। अधूरी अथवा गलत अवधारणाएँ भी चित्रों और चित्रों पर बातचीत करने के माध्यम से संशोधित, परिवर्तित होती चली जाती हैं। एक बात और जो इन अवधारणाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, वह है- संदर्भयुक्त परिवेश में अवधारणाओं का बनना।
चित्रों की भाषा ऐसी स्वच्छंदता, उनमुक्तता प्रदान करती है कि ‘पढ़ने’ वाला अपने कथ्य को स्वयं गढ़ता है। जहां बंधन न हो वहीं स्वच्छंदता और सृजनात्मक अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं इसलिए चित्रात्मक किताबें बच्चों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रही हैं. आँगनबाड़ी के बच्चों के साथ यह अनुभव भी रहा है कि रंगीन चित्रात्मक किताबों को देखते ही बच्चों के भीतर उसे छूने, पकड़ने और उसके भीतर की दुनिया में झाँकने के लिए पन्ने दर पन्ने पलटने की उत्कट इच्छा बच्चों को सक्रिय बना देती है। पढ़ना शुरू करने की प्रक्रिया का पहला सोपान यही है कि हम किताबों के प्रति आकर्षण महसूस करें और उन्हें खोलकर देखने की तीव्र इच्छा भी हो। एक बार किताब खुलते ही उसमें मौजूद अवधारणाओं का संसार भी धीरे-धीरे खुलने लगता है। दरअसल, बच्चों की प्रतिक्रिया ही इन अवधारणाओं के बनने का बनना प्रमाण है। अधूरी अथवा गलत अवधारणाएँ भी चित्रों और चित्रों पर बातचीत करने के माध्यम से संशोधित, परिवर्तित होती चली जाती हैं। एक बात और जो इन अवधारणाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, वह है- संदर्भयुक्त परिवेश में अवधारणाओं का बनना।
99. निम्न में से कारक चिन्ह नहीं है –
1. का
2. के
3. कि
4. की
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Answer – (3)