Part – IV Sanskrit (Language II)
(Official Answer Key)
परीक्षा (Exam) – CTET Paper I Primary Level (Class I to V)
भाग (Part) – Part – IV Language II Sanskrit
परीक्षा आयोजक (Organized) – CBSE
कुल प्रश्न (Number of Question) – 30
परीक्षा तिथि (Exam Date) – 23rd December 2021
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निम्नलिखितं गद्यांशं पठित्वा अष्टप्रश्नानां उचितं विकल्पं चित्वा उत्तराणि देयानि ।
बालिकायाः अनारिकायाः मनसि सर्वदा महती जिज्ञासा भवति। अतः सा बहून प्रश्नान् पृच्छति। तस्याः प्रश्नैः सर्वेषां बुद्धिः चक्रवत् भ्रमति।
प्रातः उत्थाय सा अन्वभवत् यत् तस्याः मनः प्रसन्नं नास्ति। मनोविनोदाय सा भ्रमितुं गृहात् बहिः अगच्छत्।भ्रमणकाले सा अपश्यत् यत् मार्गाः सुसज्जिताः सन्ति। सा चिन्तयति – किमर्थम् इयं सज्जा ? सा अस्मरत् यत् अद्य तु मन्त्री आगमिष्यति। सः अत्र किमर्थम् आगमिष्यति इति विषये तस्याः जिज्ञासाः प्रारब्धाः। गृहम् आगत्य सा पितरम् अपृच्छत् – “पितः! मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?” पिता अवदत् – “पुत्रि! नद्याः उपरि नवीनः सेतुः निर्मितः। तस्य उद्घाटनार्थं मन्त्री आगच्छति।” अनारिका पुनः अपृच्छत्- “पितः! किं मन्त्री सेतोः निर्माणम् अकरोत् ? ” पिता अकथयत् – ? “न हि पुत्रि! सेतोः निर्माणं कर्मकराः अकुर्वन्।” पुनः अनारिकायाः प्रश्नः आसीत्- “यदि कर्मकराः सेतोः निर्माणम् अकुर्वन्, तदा मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?” पिता अवदत् – “यतो हि सः अस्माकं देशस्य मन्त्री।” “पितः! सेतोः निर्माणाय प्रस्तराणि कुतः आयान्ति ? किं तानि मन्त्री ददाति ?
विरक्तभावेन पिता उदतरत् – “अनारिके! प्रस्तराणि जनाः पर्वतेभ्यः आनयन्ति।” “पितः! तर्हि किम्, एतदर्थं मन्त्री धनं ददाति ? तस्य पार्श्वे धनानि कुतः आगच्छन्ति ?” तान् प्रश्नान् श्रुत्वा पिताऽवदत् – “अरे! प्रजाः सर्वकाराय धनं प्रयच्छन्ति। विस्मिता अनारिका पुनः अपृच्छत् – “पितः! कर्मकराः पर्वतेभ्यः प्रस्तराणि आनयन्ति। ते एव सेतुं निर्मान्ति।” प्रजाः सर्वकाराय धनं ददति। तथापि सेतोः उद्घाटनार्थं मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?”
पिता अवदत् -“प्रथमेव अहम् अकथयम् यत् सः एव देशस्य मन्त्री अस्ति। बहुप्रश्नान् करोषि। चल, सुसज्जिता भूत्वा विद्यालयं चल।” इदानीम् अपि अनारिकायाः मनसि बहवः प्रश्नाः सन्ति।
गद्यांश का अर्थ हिन्दी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंबालिकायाः अनारिकायाः मनसि सर्वदा महती जिज्ञासा भवति। अतः सा बहून प्रश्नान् पृच्छति। तस्याः प्रश्नैः सर्वेषां बुद्धिः चक्रवत् भ्रमति।
प्रातः उत्थाय सा अन्वभवत् यत् तस्याः मनः प्रसन्नं नास्ति। मनोविनोदाय सा भ्रमितुं गृहात् बहिः अगच्छत्।भ्रमणकाले सा अपश्यत् यत् मार्गाः सुसज्जिताः सन्ति। सा चिन्तयति – किमर्थम् इयं सज्जा ? सा अस्मरत् यत् अद्य तु मन्त्री आगमिष्यति। सः अत्र किमर्थम् आगमिष्यति इति विषये तस्याः जिज्ञासाः प्रारब्धाः। गृहम् आगत्य सा पितरम् अपृच्छत् – “पितः! मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?” पिता अवदत् – “पुत्रि! नद्याः उपरि नवीनः सेतुः निर्मितः। तस्य उद्घाटनार्थं मन्त्री आगच्छति।” अनारिका पुनः अपृच्छत्- “पितः! किं मन्त्री सेतोः निर्माणम् अकरोत् ? ” पिता अकथयत् – ? “न हि पुत्रि! सेतोः निर्माणं कर्मकराः अकुर्वन्।” पुनः अनारिकायाः प्रश्नः आसीत्- “यदि कर्मकराः सेतोः निर्माणम् अकुर्वन्, तदा मन्त्री किमर्थम् आगच्छति ?” पिता अवदत् – “यतो हि सः अस्माकं देशस्य मन्त्री।” “पितः! सेतोः निर्माणाय प्रस्तराणि कुतः आयान्ति ? किं तानि मन्त्री ददाति ?
विरक्तभावेन पिता उदतरत् – “अनारिके! प्रस्तराणि जनाः पर्वतेभ्यः आनयन्ति।” “पितः! तर्हि किम्, एतदर्थं मन्त्री धनं ददाति ? तस्य पार्श्वे धनानि कुतः आगच्छन्ति ?” तान् प्रश्नान् श्रुत्वा पिताऽवदत् – “अरे! प्रजाः सर्वकाराय धनं प्रयच्छन्ति। विस्मिता अनारिका पुनः अपृच्छत् – “पितः! कर्मकराः पर्वतेभ्यः प्रस्तराणि आनयन्ति। ते एव सेतुं निर्मान्ति।” प्रजाः सर्वकाराय धनं ददति। तथापि सेतोः उद्घाटनार्थं मन्त्री किमर्थम् आगच्छति?”
पिता अवदत् -“प्रथमेव अहम् अकथयम् यत् सः एव देशस्य मन्त्री अस्ति। बहुप्रश्नान् करोषि। चल, सुसज्जिता भूत्वा विद्यालयं चल।” इदानीम् अपि अनारिकायाः मनसि बहवः प्रश्नाः सन्ति।
बालिका अनारिका के मन में सदा बहुत कुछ जानने की इच्छा रहती है। इसलिए वह बहुत से प्रश्नों को पूछती है। उसके प्रश्नों से सबकी बुद्धि चक्र की तरह घूमती है।
प्रात: उठकर उसने अनुभव किया कि उसका मन प्रसन्न नहीं है। मन प्रसन्न करने के लिए वह भ्रमण करने के लिए घर से बाहर गई। भ्रमण के समय में उसने देखा कि मार्ग सजे-धजे हैं इसका क्या कारण है ? यह विचार करती हुई उसे याद आया कि आज तो मंत्री महोदय आएंगे, वे किसलिए आएँगे ? इस विषय में उसकी जिज्ञासा आरम्भ हुई। उन जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए वह घर लौट आई और पिता से पूछने लगी पिता जी, मन्त्री महोदय किसलिए आ रहे हैं ? पिता ने कहा – पुत्री, नदी के ऊपर जो नया पुल निर्मित हुआ है, उसके उद्घाटन के लिए मन्त्री महोदय आ रहे हैं। अनारिका ने फिर पूछा पिता जी, क्या मन्त्री महोदय ने पुल का निर्माण किया है? पिता ने कहा – नहीं बेटी, पुल का, निर्माण कर्मचारियों ने किया है ? पुन: अनारिका का प्रश्न था – यदि कर्मचारियों ने पुल का निर्माण किया है, तब मन्त्री महोदय किसलिए आ रहे हैं ?
पिता ने कहा – क्योंकि वे हमारे देश के मन्त्री हैं। पिता जी, पुल निर्माण के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं ? क्या उन्हें मन्त्री जी देते हैं ? निष्पक्ष भाव से पिता ने उत्तर दिया अनारिका, लोग पर्वतों से पत्थर लाते हैं।पिता जी, तो क्या इनके लिए मन्त्री धन देते हैं ? उसके पास धन कहाँ से आता है ? इन प्रश्नों को सुनकर पिता ने कहा – अरे जनता सरकार को धन देती है। आश्चर्यचकित होकर अनारिका ने फिर पूछा – पिता जी यदि कर्मचारी पर्वतों से पत्थर लाकर पुल निर्माण करते हैं, प्रजा सरकार को धन देती है तो मन्त्री महोदय पुल का उद्घाटन करने के लिए क्यों आते हैं ?
बहुत से प्रश्नों के उत्तर देते हुए पिता ने कहा – मैंने पहले ही कहा है कि वे ही देश के मन्त्री हैं। बहुत प्रश्न करती हो। चल, तैयार होकर विद्यालय जा। अब भी अनारिका के मन में बहुत से प्रश्न है।
प्रात: उठकर उसने अनुभव किया कि उसका मन प्रसन्न नहीं है। मन प्रसन्न करने के लिए वह भ्रमण करने के लिए घर से बाहर गई। भ्रमण के समय में उसने देखा कि मार्ग सजे-धजे हैं इसका क्या कारण है ? यह विचार करती हुई उसे याद आया कि आज तो मंत्री महोदय आएंगे, वे किसलिए आएँगे ? इस विषय में उसकी जिज्ञासा आरम्भ हुई। उन जिज्ञासाओं को शान्त करने के लिए वह घर लौट आई और पिता से पूछने लगी पिता जी, मन्त्री महोदय किसलिए आ रहे हैं ? पिता ने कहा – पुत्री, नदी के ऊपर जो नया पुल निर्मित हुआ है, उसके उद्घाटन के लिए मन्त्री महोदय आ रहे हैं। अनारिका ने फिर पूछा पिता जी, क्या मन्त्री महोदय ने पुल का निर्माण किया है? पिता ने कहा – नहीं बेटी, पुल का, निर्माण कर्मचारियों ने किया है ? पुन: अनारिका का प्रश्न था – यदि कर्मचारियों ने पुल का निर्माण किया है, तब मन्त्री महोदय किसलिए आ रहे हैं ?
पिता ने कहा – क्योंकि वे हमारे देश के मन्त्री हैं। पिता जी, पुल निर्माण के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं ? क्या उन्हें मन्त्री जी देते हैं ? निष्पक्ष भाव से पिता ने उत्तर दिया अनारिका, लोग पर्वतों से पत्थर लाते हैं।पिता जी, तो क्या इनके लिए मन्त्री धन देते हैं ? उसके पास धन कहाँ से आता है ? इन प्रश्नों को सुनकर पिता ने कहा – अरे जनता सरकार को धन देती है। आश्चर्यचकित होकर अनारिका ने फिर पूछा – पिता जी यदि कर्मचारी पर्वतों से पत्थर लाकर पुल निर्माण करते हैं, प्रजा सरकार को धन देती है तो मन्त्री महोदय पुल का उद्घाटन करने के लिए क्यों आते हैं ?
बहुत से प्रश्नों के उत्तर देते हुए पिता ने कहा – मैंने पहले ही कहा है कि वे ही देश के मन्त्री हैं। बहुत प्रश्न करती हो। चल, तैयार होकर विद्यालय जा। अब भी अनारिका के मन में बहुत से प्रश्न है।
121. अनारिका बहून् प्रश्नान् किमर्थं पृच्छति ?
1. तस्याः मनसि ज्ञातुम् इच्छा अस्ति।
2. सा मेधाविनी छात्रा आसीत्।
3. सा राजनैतिकतन्त्रेण निराशा आसीत्।
4. तस्य पिता प्रसन्नतया उत्तराणि ददाति।
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Answer -(1)