पद्यांश पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
104. ‘धीरे-धीरे घर बन रहा था’ का आशय कवि के:
1. अकेलेपन से छुटकारा पाने से है।
2. अवसाद से है।
3. अकेलेपन से है।
4. अभाव से है।
Click To Show Answer
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिएः
पहले लटकाई मैंने
धान की बालियों वाली झालर
दरवाजे की चैखट पर
फिर भेजा चिड़ियों को न्योता
गृह प्रवेश का विधिवत।
चिड़ियों ने भी
न्यौते को मान दिया,
आई दाना चुगा।
और फिर लौट गयीं
बाहर ही बाहर दरवाजे से
वैसे समारोह के बाद
जैसे लौटते हैं
आमंत्रित अतिथि सब।
तब लटकाया मैंने एक आईना
भीतर
अंतःपुर की दीवार पर।
किसी अतिथि की तरह
बाहर ही बाहर से
नहीं लौटी इस बार
चिड़िया
अब अंतःपुर में
चिड़ियाँ
काँच के आईने में
अपने को निहारती शृंगार करती
और एक घर को सजाती
घर
धीरे-धीरे घर बन रहा था।
 पहले लटकाई मैंने
धान की बालियों वाली झालर
दरवाजे की चैखट पर
फिर भेजा चिड़ियों को न्योता
गृह प्रवेश का विधिवत।
चिड़ियों ने भी
न्यौते को मान दिया,
आई दाना चुगा।
और फिर लौट गयीं
बाहर ही बाहर दरवाजे से
वैसे समारोह के बाद
जैसे लौटते हैं
आमंत्रित अतिथि सब।
तब लटकाया मैंने एक आईना
भीतर
अंतःपुर की दीवार पर।
किसी अतिथि की तरह
बाहर ही बाहर से
नहीं लौटी इस बार
चिड़िया
अब अंतःपुर में
चिड़ियाँ
काँच के आईने में
अपने को निहारती शृंगार करती
और एक घर को सजाती
घर
धीरे-धीरे घर बन रहा था।
104. ‘धीरे-धीरे घर बन रहा था’ का आशय कवि के:
1. अकेलेपन से छुटकारा पाने से है।
2. अवसाद से है।
3. अकेलेपन से है।
4. अभाव से है।
Click To Show Answer
Answer -(1)