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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिएः
आधुनिक मन का रचनाकार और मानसशास्त्र का जनक डॅा. सिग्मंड फ्रायड है। उसका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन की गहराई में प्राकृतिक प्रेरणाएँ अपनी मूल आदिम अवस्था में होती हैं। उन्हें बेसिक इंस्टिंक्ट कहा जाता है। उसमें से ‘इद’ नामक मन केन्द्र बनता है। भूख, लैंगिक भावनाएँ, आक्रमण, स्वसुरक्षा ये प्रेरणाएँ हैं। मनुष्य एक सामाजिक और सुसंस्कृत प्राणी है इसीलिए आदि प्रेरणाओं को अन्य प्राणियों के समान स्वीकार लेना उनके लिए संभव नहीं होता है। इन प्रेरणाओं का दबाव उनके मन पर अधिक होता है क्योंकि वे प्राकृतिक प्रेरणाएँ होती हैं।
व्यक्ति बचपन से यौवन तक परिवार में ही विकसित होता है। आसपास के माहौल से वह व्यवहार संबंधी कुछ नीति-नियम सीखता है। वे नियम उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। मनुष्य मन के इस हिस्से को ‘सुपर ईगो’ कहा जाता है; अर्थात् ‘इद’ और ‘सुपर ईगो’-ये केवल भिन्न ही नहीं बल्कि विरुद्ध दिशाओं में प्रवाहित होने वाले प्रभावी प्रवाह हैं। परिणामस्वरूप व्यक्तित्व में बिखराव आता है। इन दोनों प्रवाहों का निरंतर संघर्ष व्यक्ति के लिए हानिकारक होता है। इसीलिए दो भिन्न प्रवृत्तियाँ संतुष्ट हों, उन्हें कम से कम पीड़ा हो, इस तरह का हल निकालने एवं समन्वय कायम करने की जिम्मेदारी मन के एक हिस्से को ही निभानी पड़ती है। यह समन्वय कायम करते समय ही बीच का हिस्सा विकसित होने लगता है, जिसे ‘ईगो’ कहा जाता है। यह ईगो, इद और सुपर ईगो-इन दोनों को कम से कम नाराज कर अधिक से अधिक संतुष्ट रखने का खेल खेलता है। वह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का होता है। सुरक्षा के इस खेल के कुल योग से ही व्यक्तित्व विकसित होने की महत्वपूर्ण क्रिया पूरी होती है।
आधुनिक मन का रचनाकार और मानसशास्त्र का जनक डॅा. सिग्मंड फ्रायड है। उसका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन की गहराई में प्राकृतिक प्रेरणाएँ अपनी मूल आदिम अवस्था में होती हैं। उन्हें बेसिक इंस्टिंक्ट कहा जाता है। उसमें से ‘इद’ नामक मन केन्द्र बनता है। भूख, लैंगिक भावनाएँ, आक्रमण, स्वसुरक्षा ये प्रेरणाएँ हैं। मनुष्य एक सामाजिक और सुसंस्कृत प्राणी है इसीलिए आदि प्रेरणाओं को अन्य प्राणियों के समान स्वीकार लेना उनके लिए संभव नहीं होता है। इन प्रेरणाओं का दबाव उनके मन पर अधिक होता है क्योंकि वे प्राकृतिक प्रेरणाएँ होती हैं।
व्यक्ति बचपन से यौवन तक परिवार में ही विकसित होता है। आसपास के माहौल से वह व्यवहार संबंधी कुछ नीति-नियम सीखता है। वे नियम उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं। मनुष्य मन के इस हिस्से को ‘सुपर ईगो’ कहा जाता है; अर्थात् ‘इद’ और ‘सुपर ईगो’-ये केवल भिन्न ही नहीं बल्कि विरुद्ध दिशाओं में प्रवाहित होने वाले प्रभावी प्रवाह हैं। परिणामस्वरूप व्यक्तित्व में बिखराव आता है। इन दोनों प्रवाहों का निरंतर संघर्ष व्यक्ति के लिए हानिकारक होता है। इसीलिए दो भिन्न प्रवृत्तियाँ संतुष्ट हों, उन्हें कम से कम पीड़ा हो, इस तरह का हल निकालने एवं समन्वय कायम करने की जिम्मेदारी मन के एक हिस्से को ही निभानी पड़ती है। यह समन्वय कायम करते समय ही बीच का हिस्सा विकसित होने लगता है, जिसे ‘ईगो’ कहा जाता है। यह ईगो, इद और सुपर ईगो-इन दोनों को कम से कम नाराज कर अधिक से अधिक संतुष्ट रखने का खेल खेलता है। वह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का होता है। सुरक्षा के इस खेल के कुल योग से ही व्यक्तित्व विकसित होने की महत्वपूर्ण क्रिया पूरी होती है।
98. ‘ईगो’ का कार्य है:
1. इद और ‘सुपर ईगो’ में समन्वय
2. ‘इद’ को संतुष्ट करना
3. ‘सुपर ईगो’ को संतुष्ट करना
4. प्राकृतिक प्रेरणाआंे को रोकना
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Answer -(1)