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नीचे दिए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उतर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
22 मई 1894 की शाम थी। डरबन स्थित अब्दुल्ला के घर पर महात्मा गाँधी की विदाई व रात्रिभोज का आयोजन था। इस आयोजन में प्रिटोरिया डरबन और नेटाल के भारतीय आए थे। अब्दुल्ला एंड कंपनी के मुकदमे को निपटाने के बाद महात्मा गाँधी वापसी आने के लिए तैयार थे। तभी एक भारतीय व्यापारी ने महात्मा गाँधी को ‘नेटाल मर्करी’ नामक एक समाचार पत्र दिया और उनसे ‘इंडियन फ्रेंचाईज़’ नामक शीर्षक से छपा लेख पढ़ने के लिए कहा। लेख पढ़ने के बाद महात्मा गाँधी गंभीर हो गए। दरअसल यह लेख नेटाल विधानसभा में पेश किए गए मताधिकार संशोधन विधेयक के विषय में जिसमें भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने के सभी पक्षों की विवेचना थी। इसका सारांश यह था कि जिन लोगों ने अपने देश में मताधिकार का उपयोग नहीं किया उन्हें दूसरे देश में मताधिकार देने का कोई मतलब नहीं है। इसका वास्तविक उद्देश्य तो भारतियों के व्यापार को रोकना था। हालात को बद से बदतर बनाने वाले कानून की जानकारी ने भारतीयों के होश उड़ा दिए। अब विदाई समारोह विधेयक परिचर्चा में बदल गया। विदा करने आए लोग गाँधी जी से रुकने का आग्रह करने लगे। भारतीयों की पीड़ा और परेशानी देखकर गाँधी जी काफी व्यथित हो गए। उन्होंने भारतीयों के निवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि विधेयक का विरोध सार्वजनिक कार्य है और इसके लिए वह किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लेंगे। उन्होंने समारोह को नेटाल इंडियन कांग्रेस में बदलकर भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
22 मई 1894 की शाम थी। डरबन स्थित अब्दुल्ला के घर पर महात्मा गाँधी की विदाई व रात्रिभोज का आयोजन था। इस आयोजन में प्रिटोरिया डरबन और नेटाल के भारतीय आए थे। अब्दुल्ला एंड कंपनी के मुकदमे को निपटाने के बाद महात्मा गाँधी वापसी आने के लिए तैयार थे। तभी एक भारतीय व्यापारी ने महात्मा गाँधी को ‘नेटाल मर्करी’ नामक एक समाचार पत्र दिया और उनसे ‘इंडियन फ्रेंचाईज़’ नामक शीर्षक से छपा लेख पढ़ने के लिए कहा। लेख पढ़ने के बाद महात्मा गाँधी गंभीर हो गए। दरअसल यह लेख नेटाल विधानसभा में पेश किए गए मताधिकार संशोधन विधेयक के विषय में जिसमें भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने के सभी पक्षों की विवेचना थी। इसका सारांश यह था कि जिन लोगों ने अपने देश में मताधिकार का उपयोग नहीं किया उन्हें दूसरे देश में मताधिकार देने का कोई मतलब नहीं है। इसका वास्तविक उद्देश्य तो भारतियों के व्यापार को रोकना था। हालात को बद से बदतर बनाने वाले कानून की जानकारी ने भारतीयों के होश उड़ा दिए। अब विदाई समारोह विधेयक परिचर्चा में बदल गया। विदा करने आए लोग गाँधी जी से रुकने का आग्रह करने लगे। भारतीयों की पीड़ा और परेशानी देखकर गाँधी जी काफी व्यथित हो गए। उन्होंने भारतीयों के निवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि विधेयक का विरोध सार्वजनिक कार्य है और इसके लिए वह किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लेंगे। उन्होंने समारोह को नेटाल इंडियन कांग्रेस में बदलकर भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
97. ‘होश उड़ना’ मुहावरे का अर्थ है –
1. बेहोश हो जाना
2. होश में आना
3. घबरा जाना
4. समझ आना
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Answer – (3)