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मैं अक्सर सोचता हूँ कि वे शहर कितने दुर्भागे हैं, जिनके अपने कोई खण्डहर ही नहीं। उनमें रहना उतना ही भयानक अनुभव हो सकता है, जैसे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलना, जो अपनी स्मृति खो चुका है, जिसका कोई अतीत नहीं। अगर मुझसे कोई नरक की परिभाषा पूछे तो वह है, हमेशा वर्तमान में रहना एक अंतहीन रोशनी, जहाँ कोई छाया नहीं, जहाँ आदमी हमेशा आँखें खोले रहता है।
जब वर्तमान का बोझ असह्य हो, मैं अपना घर छोड़कर शहर के दूसरे ‘घरों’ में चला जाता हूँ – जहाँ अब कोई लोग नहीं रहते – जहाँ अँधेरा होते ही चमगादड़ आते हैं। ये हमारे शहर में खण्डहर हैं- शहर की स्मृतियाँ और स्वप्न। एक ऐसा भी युग था, जब न शहर थे न खण्डहर – आदमी अपना अतीत खुद अपने भीतर लेकर चलता था। यहाँ यूँ कहें कि स्मृति अभी तक इतिहास नहीं बनी थी।
मैं अक्सर सोचता हूँ कि वे शहर कितने दुर्भागे हैं, जिनके अपने कोई खण्डहर ही नहीं। उनमें रहना उतना ही भयानक अनुभव हो सकता है, जैसे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलना, जो अपनी स्मृति खो चुका है, जिसका कोई अतीत नहीं। अगर मुझसे कोई नरक की परिभाषा पूछे तो वह है, हमेशा वर्तमान में रहना एक अंतहीन रोशनी, जहाँ कोई छाया नहीं, जहाँ आदमी हमेशा आँखें खोले रहता है।
जब वर्तमान का बोझ असह्य हो, मैं अपना घर छोड़कर शहर के दूसरे ‘घरों’ में चला जाता हूँ – जहाँ अब कोई लोग नहीं रहते – जहाँ अँधेरा होते ही चमगादड़ आते हैं। ये हमारे शहर में खण्डहर हैं- शहर की स्मृतियाँ और स्वप्न। एक ऐसा भी युग था, जब न शहर थे न खण्डहर – आदमी अपना अतीत खुद अपने भीतर लेकर चलता था। यहाँ यूँ कहें कि स्मृति अभी तक इतिहास नहीं बनी थी।
94. लेखक के अनुसार ‘नरक’ की परिभाषा क्या है?
1. सदैव स्वप्न देखना।
2. सदैव वर्तमान में रहना।
3. सदैव अपने घर में रहना।
4. सदैव आँखें खोले रहना।
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Answer – (2)