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दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।
तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तृप्त होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन-किन चीजों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है, लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा-तृष्णा न मरे, मर-मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती हैं! उपाय सीधा और सरल है। अंतःकरण की तृष्णा को तृप्त करना है। जब यह तृष्णा तृप्त हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतःकरण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत-महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुःखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुःख-ही-दुःख मिलता है, लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृग मरीचिका की स्थिति से गुजर रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढ़ता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतःकरण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
तृष्णा! एक तृष्णा होती है जो पानी पीकर तृप्त होती है। एक तृष्णा होती है जो खाना खाकर तृप्त होती है। एक तृष्णा है जो ढेर सारा मान-सम्मान पाने से तृप्त होती है। मतलब तृष्णाओं का कोई अंत नहीं है। धन, वैभव और न जाने किन-किन चीजों की तृष्णा। इन तृष्णाओं की पूर्ति में सारा जीवन लगा हुआ है। एक दिन जीवन पूरा हो जाता है, लेकिन तृष्णा पूरी नहीं होती। आशा-तृष्णा न मरे, मर-मर जाए शरीर। आखिर क्या उपाय है कि इन तृष्णाओं से मुक्ति मिले जो जीवन भर परेशान करती हैं! उपाय सीधा और सरल है। अंतःकरण की तृष्णा को तृप्त करना है। जब यह तृष्णा तृप्त हो जाती है तब बाहरी तृष्णा, आकांक्षा, कामना स्वयं फीकी पड़ जाती है। अब प्रश्न यह है कि अंतःकरण की तृष्णा कैसे तृप्त होगी? संत-महात्माओं ने इसका हल सुझाया है और वह यह है कि अंतस चेतना का ज्ञान, अनुभव, साक्षात्कार होने पर तृष्णा का शमन होता है। अंदर एक प्यास हर समय लगी रहती है। आनंद प्राप्ति की चाहत वह प्यास है जो बाहरी साधनों से नहीं मिलती है बल्कि अंदर ही इसका झरना है, आनंद का झरना। आनंद रूपी पानी भी अंदर है और प्यास भी अंदर है। जब तक अंदर के झरने में तृष्णा नहीं मिटती, यह संसार दुःखों का डेरा है। हर समय यहाँ दुःख-ही-दुःख मिलता है, लेकिन उसे सुख समझ रहे हैं। मृग मरीचिका की स्थिति से गुजर रहे हैं। मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह बाहर ढूँढ़ता है। इसी प्रकार तृप्ति अंतःकरण में है और हम बाहर भटक रहे हैं, अज्ञानतावश।
93. गद्यांश में किस अज्ञानता की चर्चा की गई है?
1. तृप्ति को भीतर खोजना
2. तृप्ति को बाहर खोजना
3. तृष्णा को मरीचिका समझना
4. तृष्णा को तृप्त करना
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Answer – (2)