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निर्देश: दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
किसी भी उपहार की सार्थकता तभी है जब वह हृदय से किसी सही व्यक्ति को सही समय और सही जगह पर दिया जाए। उपहार देने वाला व्यक्ति दिल में उस उपहार के बदले कुछ पाने की उम्मीद न रखता हो। हमें इस जीवन में जो भी करना चाहिए, सत्य से प्रेरित कृत्य के अनुसार करना चाहिए। हमें समय और दूसरे लोगों, दोनों को सम्मान देना चाहिए। इस तरह का कृत्य व्यक्ति के भाग्य को बदल कर रख देता है। गीता में भी कहा गया है कि ऐसा कोई नहीं जिसने इस संसार में अच्छा काम किया हो और उसका अंत बुरा हुआ हो। कहा जाता है कि कर्म ही धर्म है, इसलिए हमें काम करते जाना चाहिए फल अपने आप हमें मिलेगा। कार्य करते समय कार्य के उद्देश्य पर भी ध्यान देना होगा। यदि हमारे कार्य का उद्देश्य समाज के हित में है तो वह कार्य हमें आनन्द की अनुभूति करवाएगा। कर्म करना परन्तु केवल अपने हित के लिए कर्म करना सार्थक नहीं कहलाएगा।
किसी भी उपहार की सार्थकता तभी है जब वह हृदय से किसी सही व्यक्ति को सही समय और सही जगह पर दिया जाए। उपहार देने वाला व्यक्ति दिल में उस उपहार के बदले कुछ पाने की उम्मीद न रखता हो। हमें इस जीवन में जो भी करना चाहिए, सत्य से प्रेरित कृत्य के अनुसार करना चाहिए। हमें समय और दूसरे लोगों, दोनों को सम्मान देना चाहिए। इस तरह का कृत्य व्यक्ति के भाग्य को बदल कर रख देता है। गीता में भी कहा गया है कि ऐसा कोई नहीं जिसने इस संसार में अच्छा काम किया हो और उसका अंत बुरा हुआ हो। कहा जाता है कि कर्म ही धर्म है, इसलिए हमें काम करते जाना चाहिए फल अपने आप हमें मिलेगा। कार्य करते समय कार्य के उद्देश्य पर भी ध्यान देना होगा। यदि हमारे कार्य का उद्देश्य समाज के हित में है तो वह कार्य हमें आनन्द की अनुभूति करवाएगा। कर्म करना परन्तु केवल अपने हित के लिए कर्म करना सार्थक नहीं कहलाएगा।
97. ‘स्वयं को कर्म के लिए साध लेना’ से तात्पर्य है ________
1. कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहना।
2. कर्म के लिए प्रशिक्षण लेना।
3. दूसरों को कर्म करते रहने की प्रेरणा देना।
4. अपने काम में दूसरों को जोड़ते जाना।
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Answer -(1)