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निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिएः
गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,
वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,
छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन;
गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारूँ,
और अपने कंठ पर तुझको संवारूँ,
कह उठे संसार, आया ज्योति का क्षण;
गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
दूर कर मुझमें भरी तू लालिमा जब,
फैल जाए विश्व में भी कालिमा तब,
जानता सीमा नहीं है अग्नि का कण;
गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,
वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,
छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन;
गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारूँ,
और अपने कंठ पर तुझको संवारूँ,
कह उठे संसार, आया ज्योति का क्षण;
गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
दूर कर मुझमें भरी तू लालिमा जब,
फैल जाए विश्व में भी कालिमा तब,
जानता सीमा नहीं है अग्नि का कण;
गीत मेरे, देहरी के दीप-सा बन।
102. कवि अपने गीत रूपी दीपक को अपने ज्ञान व जीवन शक्ति के द्वारा प्रज्ज्वलित करना चाहता है, यह भाव निम्न में से किस पंक्ति में निहित है?
1. और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,
2. कह उठे संसार, आया ज्योति का क्षण;
3. प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारूँ,
4. गीत मेरे, देहरी के दीप सा बन।
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Answer – (3)