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डोरबेल बजती है
मैं दरवाजा खोलता हूँ।
आगंतुक को मैं नहीं जानता
वे अपना परिचय खुद देते हैं।
कहते हैं
‘हम जनमानस की संवेदनाएं हैं
सुना है तुम
संवेदनाओं का घर बनाते हो।
अपनी कलम और कागज के साथ
तो क्यों नहीं लपेट लेते हमें भी
अपनी कलम और कागज के साथ
अब इस संसार में हमारी जगह नहीं है
समझकर अतिक्रमण
हटा दिया गया है हमें’
मैं पल भर के लिए
रुकता हूँ
सोचता हूँ
हँसता हूँ
मन ही मन कहता हूँ
शायद डायनासोर के बाद अब
संवेदनाओं का नम्बर है।
डोरबेल बजती है
मैं दरवाजा खोलता हूँ।
आगंतुक को मैं नहीं जानता
वे अपना परिचय खुद देते हैं।
कहते हैं
‘हम जनमानस की संवेदनाएं हैं
सुना है तुम
संवेदनाओं का घर बनाते हो।
अपनी कलम और कागज के साथ
तो क्यों नहीं लपेट लेते हमें भी
अपनी कलम और कागज के साथ
अब इस संसार में हमारी जगह नहीं है
समझकर अतिक्रमण
हटा दिया गया है हमें’
मैं पल भर के लिए
रुकता हूँ
सोचता हूँ
हँसता हूँ
मन ही मन कहता हूँ
शायद डायनासोर के बाद अब
संवेदनाओं का नम्बर है।
102. संवेदनाओं की तुलना डायनासोर से क्यों की गई है?
1. संवेदनाएं डायनासोर की तरह भयावह हैं।
2. संवेदनाएं डायनासोर की तरह प्राचीन हैं।
3. संवेदनाएं डायनासोर की तरह लुप्त हो जाएंगी।
4. संवेदनाएं डायनासोर की तरह विशाल हैं।
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Answer – (3)