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डोरबेल बजती है
मैं दरवाजा खोलता हूँ।
आगंतुक को मैं नहीं जानता
वे अपना परिचय खुद देते हैं।
कहते हैं
‘हम जनमानस की संवेदनाएं हैं
सुना है तुम
संवेदनाओं का घर बनाते हो।
अपनी कलम और कागज के साथ
तो क्यों नहीं लपेट लेते हमें भी
अपनी कलम और कागज के साथ
अब इस संसार में हमारी जगह नहीं है
समझकर अतिक्रमण
हटा दिया गया है हमें’
मैं पल भर के लिए
रुकता हूँ
सोचता हूँ
हँसता हूँ
मन ही मन कहता हूँ
शायद डायनासोर के बाद अब
संवेदनाओं का नम्बर है।
डोरबेल बजती है
मैं दरवाजा खोलता हूँ।
आगंतुक को मैं नहीं जानता
वे अपना परिचय खुद देते हैं।
कहते हैं
‘हम जनमानस की संवेदनाएं हैं
सुना है तुम
संवेदनाओं का घर बनाते हो।
अपनी कलम और कागज के साथ
तो क्यों नहीं लपेट लेते हमें भी
अपनी कलम और कागज के साथ
अब इस संसार में हमारी जगह नहीं है
समझकर अतिक्रमण
हटा दिया गया है हमें’
मैं पल भर के लिए
रुकता हूँ
सोचता हूँ
हँसता हूँ
मन ही मन कहता हूँ
शायद डायनासोर के बाद अब
संवेदनाओं का नम्बर है।
104. संवेदनाओं का घर बनाने से अभिप्राय हैः
1. मुख्य स्तर के रूप में संवेदनाओं को लेखन में शामिल करना।
2. गौण स्तर के रूप में संवेदनाओं को लेखन में शामिल करना।
3. मुख्य स्तर के रूप में संवेदनाओं की कल्पना करना।
4. गौण स्तर के रूप में संवेदनाओं का यथार्थ चित्रण करना।
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Answer -(1)