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आग के इस लोकानुग्रही रूप का विग्रह अलाव भी है, जो न केवल शीत दूर करने का माध्यम है बल्कि लोक की सामूहिक चेतना का प्रतीक भी है I अलाव से ही जुड़े हैं नेह-छोह के अदृश्य बंधन जिनके पाश में बँधा हुआ था समूचा गाँव। जैसे-जैसे बदलाव ने पाँव पसारे हैं, अलाव अब प्राय: स्मृति की चीज बनता जा रहा है। गाँव जो अलाव के पास बैठकर अपने-अपने दुख-सुख बाँटता था वह अब शहराता जा रहा है I समय के साथ-साथ हमारे प्रेम और अपनत्व के दायरे सिमटते जा रहे हैं I शहरों से आयातित शहरीपन गाँव की नस-नस में समाता जा रहा है। दुमुँहापन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बनता जा रहा है। ऐसे में चौपाल पर अलाव के इर्द-गिर्द बैठकर इकहरे मन से बातें भला किसे रुचे I
आग के इस लोकानुग्रही रूप का विग्रह अलाव भी है, जो न केवल शीत दूर करने का माध्यम है बल्कि लोक की सामूहिक चेतना का प्रतीक भी है I अलाव से ही जुड़े हैं नेह-छोह के अदृश्य बंधन जिनके पाश में बँधा हुआ था समूचा गाँव। जैसे-जैसे बदलाव ने पाँव पसारे हैं, अलाव अब प्राय: स्मृति की चीज बनता जा रहा है। गाँव जो अलाव के पास बैठकर अपने-अपने दुख-सुख बाँटता था वह अब शहराता जा रहा है I समय के साथ-साथ हमारे प्रेम और अपनत्व के दायरे सिमटते जा रहे हैं I शहरों से आयातित शहरीपन गाँव की नस-नस में समाता जा रहा है। दुमुँहापन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बनता जा रहा है। ऐसे में चौपाल पर अलाव के इर्द-गिर्द बैठकर इकहरे मन से बातें भला किसे रुचे I
99. ‘अपनत्व’ में मूल शब्द है –
1. अपनापन
2. अपन
3. अप
4. अपना
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Answer – (4)