149. सीमित-अवबोधबलेन विद्यार्थी पाठं पठितुं शक्नोति, स्वभ्रातु: साहाय्येन स: पाठं सम्यक-रीत्या पठितुं, तदाधारितं अवबोधकार्यं च कर्तुं शक्नोति, पठनशिक्षणयो: एषा पद्धति: कथ्यते–
1. कोचिंग (Chaching)
2. ट्युटरिंग (Tutoring)
3. पृष्ठाश्रयम् (Scaffolding)
4. निवेश परिकल्पना (Input Hypothesis)
Click To Show Answer
Answer – (3)
सीमित अवबोध से युक्त छात्र पाठ को पढ़ने में सक्षम तथा एक छात्र भाई के साथ अपने पाठ को भली प्रकार से पढ़ने व समझने की क्रिया में समर्थ होता है। इस कथन की क्रिया को ‘पृष्ठाश्रय’ कहते हैं। इस क्रिया के प्रवर्तक वायगोत्सकी महोदय माने जाते हैं। इस क्रिया से सम्बन्धित अवधारणा विकास के क्षेत्र की शिक्षण विधि है जो छात्रों को सीखने में तेजी से मदद करता है।
सीमित अवबोध से युक्त छात्र पाठ को पढ़ने में सक्षम तथा एक छात्र भाई के साथ अपने पाठ को भली प्रकार से पढ़ने व समझने की क्रिया में समर्थ होता है। इस कथन की क्रिया को ‘पृष्ठाश्रय’ कहते हैं। इस क्रिया के प्रवर्तक वायगोत्सकी महोदय माने जाते हैं। इस क्रिया से सम्बन्धित अवधारणा विकास के क्षेत्र की शिक्षण विधि है जो छात्रों को सीखने में तेजी से मदद करता है।