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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिएः
प्रकृति ने स्वच्छ हवा मुक्त हस्त से हमें लुटाई है। जल और पवन को हम दिव्य शक्ति के रूप में पूजते हैं। धरिणी को हम ‘माँ’ कहते हैं। लेकिन विज्ञान के युग में पैर रखते ही मानव की जिज्ञासा बढ़ने लगी और भौतिकवाद ने पाँव पसारे। उसने धरिणी तो क्या, अगम आकाश को लाँघ और सागर की विशाल लहरों को चीर डाला। दूसरी ओर दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के कारण औद्योगिकीकरण, नगरीकरण और उत्पादन में वृद्धि की होड़ में प्रकृति का छेदन-भेदन करता चला गया। परिणामस्वरूप प्रकृति का संतुलन इतनी तेजी से बिगड़ा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक संकट बन गया। आज हमारे पास न तो पीने को स्वच्छ जल है और न साँस लेने को शुद्ध हवा। जबकि सम्पूर्ण जीव जगत के लिए जल जीवन है। वायु उसका प्राण तत्व है। धरिणी इस सृष्टि का आधार है। सृष्टि के अस्तित्व की रक्षा के लिए इन सबमें संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
उक्त विषम स्थिति में हमारी रक्षा का एक उपाय है-वन-संरक्षण। वृक्ष हमारे मित्र हैं और रक्षक भी। वे हमें प्राणवायु देते हैं और जल भी। अतः वृक्ष जीवनदाता हैं। इसलिए हमारे यहाँ तुलसी, आँवला, आम, पीपल, वट, आदि वृक्षों को पूजनीय माना गया है। एक वृक्ष दस पुत्रों के समान मानने की बात सर्वथा सत्य है। वन धरिणी के जीते-जागते स्वर्ग हैं। वनों से वर्षा और वर्षा से अन्न होता है। इसलिए वनों का विनाश रोकें और धरिणी का नृशंस दोहन से बचाव करके उसका शृंगार करें। धरिणी को प्रलय के महामेघ से बचाने में आम मनुष्य कारगर भूमिका निभा सकते हैं।
प्रकृति ने स्वच्छ हवा मुक्त हस्त से हमें लुटाई है। जल और पवन को हम दिव्य शक्ति के रूप में पूजते हैं। धरिणी को हम ‘माँ’ कहते हैं। लेकिन विज्ञान के युग में पैर रखते ही मानव की जिज्ञासा बढ़ने लगी और भौतिकवाद ने पाँव पसारे। उसने धरिणी तो क्या, अगम आकाश को लाँघ और सागर की विशाल लहरों को चीर डाला। दूसरी ओर दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के कारण औद्योगिकीकरण, नगरीकरण और उत्पादन में वृद्धि की होड़ में प्रकृति का छेदन-भेदन करता चला गया। परिणामस्वरूप प्रकृति का संतुलन इतनी तेजी से बिगड़ा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक संकट बन गया। आज हमारे पास न तो पीने को स्वच्छ जल है और न साँस लेने को शुद्ध हवा। जबकि सम्पूर्ण जीव जगत के लिए जल जीवन है। वायु उसका प्राण तत्व है। धरिणी इस सृष्टि का आधार है। सृष्टि के अस्तित्व की रक्षा के लिए इन सबमें संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
उक्त विषम स्थिति में हमारी रक्षा का एक उपाय है-वन-संरक्षण। वृक्ष हमारे मित्र हैं और रक्षक भी। वे हमें प्राणवायु देते हैं और जल भी। अतः वृक्ष जीवनदाता हैं। इसलिए हमारे यहाँ तुलसी, आँवला, आम, पीपल, वट, आदि वृक्षों को पूजनीय माना गया है। एक वृक्ष दस पुत्रों के समान मानने की बात सर्वथा सत्य है। वन धरिणी के जीते-जागते स्वर्ग हैं। वनों से वर्षा और वर्षा से अन्न होता है। इसलिए वनों का विनाश रोकें और धरिणी का नृशंस दोहन से बचाव करके उसका शृंगार करें। धरिणी को प्रलय के महामेघ से बचाने में आम मनुष्य कारगर भूमिका निभा सकते हैं।
94. अनुच्छेद से ज्ञात होता है कि प्रकृति ने स्वच्छ:
1. हवा मुक्त हस्त से लुटाई है।
2. जल मुक्त हस्त से लुटाया है।
3. अग्नि मुक्त हस्त से लुटाई है।
4. दिव्य शक्ति मुक्त हस्त से लुटाई है।
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Answer -(1)