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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए –
जीवन का अर्थ है वृद्धि, अर्थात् विस्तार, और विस्तार ही प्रेम है। इसलिए प्रेम ही जीवन है – वही जीवन का एकमात्र गति-नियामक है और स्वार्थपरता ही मृत्यू है। इहलोक और परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के विनाश के बाद और कुछ नहीं रहता, तो भी उसे यह मानना पड़ेगा कि स्वार्थपरता ही यथार्थ मृत्यु है।
परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। जितने नर-पशु तुम देखते हो, उनमें नब्बे प्रतिशत मृत हैं – प्रेत हैं; क्योंकि, ऐ बच्चों, जिसमें प्रेम नहीं है, वह मृत नहीं तो और क्या है? ऐ युवकों, सबके लिए तुम्हारे हृदय में दर्द हो – गरीब, मूर्ख और पददलितों के दुःख को हृदय से अनुभव करो, समवेदना से तुम्हारे हृदय की क्रिया रुक जाय, मस्तिष्क चकराने लगे, तुम्हें ऐसा प्रतीत हो कि हम पागल तो नहीं हो गये हैं। तब जाकर ईश्वर के चरणों में अपने हृदय की व्यथा प्रकट करो। तभी उनके पास से शक्ति, सहायता और अदम्य उत्साह आयेगा। गत दस वर्ष से मैं और मेरा मूलमंत्र घोषित करते आया हूँ कि प्रयत्न करते रहो, और अब भी मैं कहता हूँ कि अविराम प्रयत्न करते चलो। जब चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार दिखता था, तब भी मैं कहा कहता था – प्रयत्न करते रहो; और आज जब थोड़ा-थोड़ा उजाला दिख रहा है, तब भी मैं कहता हूँ कि प्रयत्न करते जाओ।
जीवन का अर्थ है वृद्धि, अर्थात् विस्तार, और विस्तार ही प्रेम है। इसलिए प्रेम ही जीवन है – वही जीवन का एकमात्र गति-नियामक है और स्वार्थपरता ही मृत्यू है। इहलोक और परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के विनाश के बाद और कुछ नहीं रहता, तो भी उसे यह मानना पड़ेगा कि स्वार्थपरता ही यथार्थ मृत्यु है।
परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। जितने नर-पशु तुम देखते हो, उनमें नब्बे प्रतिशत मृत हैं – प्रेत हैं; क्योंकि, ऐ बच्चों, जिसमें प्रेम नहीं है, वह मृत नहीं तो और क्या है? ऐ युवकों, सबके लिए तुम्हारे हृदय में दर्द हो – गरीब, मूर्ख और पददलितों के दुःख को हृदय से अनुभव करो, समवेदना से तुम्हारे हृदय की क्रिया रुक जाय, मस्तिष्क चकराने लगे, तुम्हें ऐसा प्रतीत हो कि हम पागल तो नहीं हो गये हैं। तब जाकर ईश्वर के चरणों में अपने हृदय की व्यथा प्रकट करो। तभी उनके पास से शक्ति, सहायता और अदम्य उत्साह आयेगा। गत दस वर्ष से मैं और मेरा मूलमंत्र घोषित करते आया हूँ कि प्रयत्न करते रहो, और अब भी मैं कहता हूँ कि अविराम प्रयत्न करते चलो। जब चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार दिखता था, तब भी मैं कहा कहता था – प्रयत्न करते रहो; और आज जब थोड़ा-थोड़ा उजाला दिख रहा है, तब भी मैं कहता हूँ कि प्रयत्न करते जाओ।
95. अनुच्छेद में अंधकार ______ का प्रतीक है।
1. रात्रि
2. कठिनाइयों
3. बुराइयों
4. विराम
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Answer – (2)