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तन जिसका हो मन और आत्मा मेरा है,
चिन्ता नहीं बाहर उजाला या अँधेरा है।
चलना मुझे है, बस अंत तक चलना,
गिरना ही मुख्य नहीं, मुख्य है सँभलना।
गिरना क्या उसका उठा ही नहीं जो कभी
मैं ही तो उठा था आप गिरता हूँ जो अभी।
फिर भी उठूँगा और बढ़के रहूँगा मैं
नर हूँ, पुरुष हूँ मैं, चढ़के रहूँगा मैं।
तन जिसका हो मन और आत्मा मेरा है,
चिन्ता नहीं बाहर उजाला या अँधेरा है।
चलना मुझे है, बस अंत तक चलना,
गिरना ही मुख्य नहीं, मुख्य है सँभलना।
गिरना क्या उसका उठा ही नहीं जो कभी
मैं ही तो उठा था आप गिरता हूँ जो अभी।
फिर भी उठूँगा और बढ़के रहूँगा मैं
नर हूँ, पुरुष हूँ मैं, चढ़के रहूँगा मैं।
103. ‘चिंता’ शब्द से बनने वाला विशेषण है-
1. चिंतन
2. चिंतित
3. चेष्टा
4. चिंतापरक
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Answer – (2)