Part – IV Sanskrit (Language II)
(Official Answer Key)
परीक्षा (Exam) – CTET Paper I Primary Level (Class I to V)
भाग (Part) – Part – IV Language II Sanskrit
परीक्षा आयोजक (Organized) – CBSE
कुल प्रश्न (Number of Question) – 30
परीक्षा तिथि (Exam Date) – 31st December 2021
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निर्देश: अधोलिखित गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेभ्यः उचिततमम् उत्तरं चित्वा लिखतI
नागार्जुनः कश्चित् रसायनशास्त्रज्ञः प्रसिद्धः चिकित्सकः चापिI एकदा नागार्जुनः राजानम् उक्तवान्- महाराज! कार्य बहु अस्ति। सर्वम् कर्तुम् अहम् असमर्थःI मम एकः सहायकः आवश्यकः इति।राजा अङ्गीकृतवान्। भवतु अहम् व्यवस्थां करिष्यामि। श्वः योग्याः पुरुषाः आगमिष्यन्ति। परीक्षां कृत्वा एकं स्वीकरोतु” इति उक्तवान् च।
अपरस्मिन् दिवसे उभौ युवकौ आगतौ। नागार्जुनः तयोः विद्याभ्यासविषये पृष्टवान्। विद्याभ्यासः उभयोः अपि समान्I नागार्जुनः उभाभ्याम् अपि एकैकं वस्तु दत्त्वा प्रत्येक उक्तवान्-इदं वस्तु गृहम् नयतु। अनेन एकं रसायनम् निर्माय आनयतु। श्वः पुनः मां पश्यतु। गमनसमये राजमार्गेण एव गच्छतु” इति।
श्वः नागार्जुनः माम् एव स्वीकरिष्यति इति उभयो अपि विश्वासःI अपरस्मिन् दिने उभौ अपि आगतवन्तौ। एकः सन्तोषेण अस्ति। सः वदति- “अहं रसायनं सज्जीकृत्य आनीतवान् पश्यतु”I द्वितीयस्य मुखं म्लानम्। नागार्जुनः द्वितीयं पृष्टवान् – भवतः मुखं किमर्थं म्लानम् ? रसायनं किं न कृतम् ? इति।
न उत्तरं दत्तवान् द्वितीयः। किमर्थ इति तं पृष्टवान् नागार्जुनः। राजमार्गेण अहं गच्छन् आसम्। ततः एक वृद्धः रोगी दृष्टः। तस्य दशा शोचनीया आसीत्। अहं तं चिकित्सालयं नीतवान्। तस्य सेवां कृतवान्I अतः रसायननिर्माणार्थं समयः एव न लब्धः इति उक्तवान् द्वितीयःI नागार्जुनः द्वितीयम् एव सहायकत्वेन स्वीकृतवान्। कथम् सः द्वितीय स्वीकृतवान् इति राजनि पृष्टे नागार्जुनः उक्तवान् द्वितीयः सेवायां निरतः आसीत्। तं रोगिणं अहं पूर्वमेव तत्र दृष्ट्वान्। अतः राज्यमार्गेण गन्तव्यं इति उक्तवान्। प्रथमः रोगिणं दृष्टवान्, तथापि अग्रे गतवान्। सः यन्त्रवत् करोति। तस्य सेवाभावनां बिना चिकित्सकः कथं भवेत् ? कथं मम सहायकः भवेत् ? अतः अहम् द्वितीय एव स्वीकृतवान् इति।
गद्यांश का अर्थ हिन्दी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंनागार्जुनः कश्चित् रसायनशास्त्रज्ञः प्रसिद्धः चिकित्सकः चापिI एकदा नागार्जुनः राजानम् उक्तवान्- महाराज! कार्य बहु अस्ति। सर्वम् कर्तुम् अहम् असमर्थःI मम एकः सहायकः आवश्यकः इति।राजा अङ्गीकृतवान्। भवतु अहम् व्यवस्थां करिष्यामि। श्वः योग्याः पुरुषाः आगमिष्यन्ति। परीक्षां कृत्वा एकं स्वीकरोतु” इति उक्तवान् च।
अपरस्मिन् दिवसे उभौ युवकौ आगतौ। नागार्जुनः तयोः विद्याभ्यासविषये पृष्टवान्। विद्याभ्यासः उभयोः अपि समान्I नागार्जुनः उभाभ्याम् अपि एकैकं वस्तु दत्त्वा प्रत्येक उक्तवान्-इदं वस्तु गृहम् नयतु। अनेन एकं रसायनम् निर्माय आनयतु। श्वः पुनः मां पश्यतु। गमनसमये राजमार्गेण एव गच्छतु” इति।
श्वः नागार्जुनः माम् एव स्वीकरिष्यति इति उभयो अपि विश्वासःI अपरस्मिन् दिने उभौ अपि आगतवन्तौ। एकः सन्तोषेण अस्ति। सः वदति- “अहं रसायनं सज्जीकृत्य आनीतवान् पश्यतु”I द्वितीयस्य मुखं म्लानम्। नागार्जुनः द्वितीयं पृष्टवान् – भवतः मुखं किमर्थं म्लानम् ? रसायनं किं न कृतम् ? इति।
न उत्तरं दत्तवान् द्वितीयः। किमर्थ इति तं पृष्टवान् नागार्जुनः। राजमार्गेण अहं गच्छन् आसम्। ततः एक वृद्धः रोगी दृष्टः। तस्य दशा शोचनीया आसीत्। अहं तं चिकित्सालयं नीतवान्। तस्य सेवां कृतवान्I अतः रसायननिर्माणार्थं समयः एव न लब्धः इति उक्तवान् द्वितीयःI नागार्जुनः द्वितीयम् एव सहायकत्वेन स्वीकृतवान्। कथम् सः द्वितीय स्वीकृतवान् इति राजनि पृष्टे नागार्जुनः उक्तवान् द्वितीयः सेवायां निरतः आसीत्। तं रोगिणं अहं पूर्वमेव तत्र दृष्ट्वान्। अतः राज्यमार्गेण गन्तव्यं इति उक्तवान्। प्रथमः रोगिणं दृष्टवान्, तथापि अग्रे गतवान्। सः यन्त्रवत् करोति। तस्य सेवाभावनां बिना चिकित्सकः कथं भवेत् ? कथं मम सहायकः भवेत् ? अतः अहम् द्वितीय एव स्वीकृतवान् इति।
नागार्जुन एक रसायनज्ञ और एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे। एक बार नागार्जुन ने राजा से कहा, “महाराज! बहुत काम है। मैं सब कुछ करने में असमर्थ हूं। मुझे एक सहायक की जरूरत है।” राजा मान गया और उन्होंने कहा, “मैं व्यवस्था करता हूँ। सही आदमी कल पहुंचेंगे। परीक्षा लें और एक को स्वीकार करें।”
अगले दिन दोनों युवक पहुंचे। नागार्जुन ने उनके सीखने और अभ्यास के बारे में पूछा। ज्ञान का अभ्यास दोनों के लिए समान है।नागार्जुन ने उन दोनों को एक समय में एक वस्तु दी और उनमें से प्रत्येक से कहा, “इस वस्तु को घर ले जाओ। इससे एक रसायन बनाकर लाओ। कल फिर मिलेंगे। जब तुम निकलो, तो राजमार्ग से ही जाना।”
दोनों को विश्वास था कि कल नागार्जुन मुझे स्वीकार करेंगे। अगले दिन वे दोनों आ गए। एक संतुष्ट था। उसने कहा, “मैंने रसायन तैयार कर लाया है, देखो।” दूसरे का चेहरा म्लान था। नागार्जुन ने दूसरे से पूछा, “तुम्हारा चेहरा म्लान क्यों है? रसायन क्यों नहीं बनाया?”
दूसरे ने जवाब नहीं दिया। नागार्जुन ने उससे क्यों ऐसा पूँछा। “मैं राजमार्ग से चल रहा था। तभी एक बुजुर्ग मरीज नजर आया। उनकी हालत दयनीय थी। मैं उसे चिकित्सालय में ले गया। उसकी सेवा की। इसलिए मेरे पास रसायन बनाने का समय नहीं था”, दूसरे ने कहा। नागार्जुन ने दूसरे को अपने सहायक के रूप में स्वीकार किया। जब राजा ने पूछा कि उसने दूसरे को कैसे स्वीकार किया, तो नागार्जुन ने कहा कि “दूसरा सेवा में लगा हुआ है। मैंने वहाँ उस मरीज को पहले ही देख लिया था तो उनको कहा कि उन्हें राजमार्ग से जाना है। पहले व्यक्ति ने रोगी को देखा, और फिर भी आगे बढ़ गया। वह यह काम एक यंत्र की तरह करता है। सेवा की भावना के बिना कोई चिकित्सक कैसे हो सकता है? यह मेरी मदद कैसे कर सकता है? तो मैंने दूसरे का स्वीकार कर लिया।”
अगले दिन दोनों युवक पहुंचे। नागार्जुन ने उनके सीखने और अभ्यास के बारे में पूछा। ज्ञान का अभ्यास दोनों के लिए समान है।नागार्जुन ने उन दोनों को एक समय में एक वस्तु दी और उनमें से प्रत्येक से कहा, “इस वस्तु को घर ले जाओ। इससे एक रसायन बनाकर लाओ। कल फिर मिलेंगे। जब तुम निकलो, तो राजमार्ग से ही जाना।”
दोनों को विश्वास था कि कल नागार्जुन मुझे स्वीकार करेंगे। अगले दिन वे दोनों आ गए। एक संतुष्ट था। उसने कहा, “मैंने रसायन तैयार कर लाया है, देखो।” दूसरे का चेहरा म्लान था। नागार्जुन ने दूसरे से पूछा, “तुम्हारा चेहरा म्लान क्यों है? रसायन क्यों नहीं बनाया?”
दूसरे ने जवाब नहीं दिया। नागार्जुन ने उससे क्यों ऐसा पूँछा। “मैं राजमार्ग से चल रहा था। तभी एक बुजुर्ग मरीज नजर आया। उनकी हालत दयनीय थी। मैं उसे चिकित्सालय में ले गया। उसकी सेवा की। इसलिए मेरे पास रसायन बनाने का समय नहीं था”, दूसरे ने कहा। नागार्जुन ने दूसरे को अपने सहायक के रूप में स्वीकार किया। जब राजा ने पूछा कि उसने दूसरे को कैसे स्वीकार किया, तो नागार्जुन ने कहा कि “दूसरा सेवा में लगा हुआ है। मैंने वहाँ उस मरीज को पहले ही देख लिया था तो उनको कहा कि उन्हें राजमार्ग से जाना है। पहले व्यक्ति ने रोगी को देखा, और फिर भी आगे बढ़ गया। वह यह काम एक यंत्र की तरह करता है। सेवा की भावना के बिना कोई चिकित्सक कैसे हो सकता है? यह मेरी मदद कैसे कर सकता है? तो मैंने दूसरे का स्वीकार कर लिया।”
121. नागार्जुनः कस्मिन् विषये पृष्टवान्?
1. आयुर्विषये
2. ग्रामविषये
3. विद्याभ्यासविषये
4. योग्यताविषये
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Answer – (3)