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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिएः
मातृभाषा का विद्यालयी पाठ्यचर्या में महत्वपूर्ण स्थान है। यह विद्यालय में पढ़ाया जाने वाला एक विषय मात्र ही नहीं, अन्य विषयों को सीखने का माध्यम भी है। भाषा के माध्यम से जो मूलभूत कौशल अर्जित किए जाते हैं वे अन्य विषय क्षेत्रों की संकल्पनाओं को समझने-सीखने में भी सहायता करते हैं। अक्सर देखा गया है कि जिस बालक में मातृभाषा की पकड़ जितनी अधिक होती है वह उतनी सरलता और शीघ्रता से अन्य विषयों का ज्ञानार्जन कर लेता है। इस दृष्टि से यह उपयुक्त है कि जिस भाषा में बालक बोलता, सोचता और कल्पना करता है वही भाषा उसकी शिक्षा का माध्यम भी हो ताकि अध्ययन किए जाने वाले विषयों को सही ढंग से समझने, उन पर स्वतंत्र रूप से चिंतन करने तथा उन्हें स्पष्ट और प्रभावी रूप से अभिव्यक्त करने में आसानी हो। इसी कारण सभी शिक्षाविदों ने इस बात पर बल दिया है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए। परन्तु अक्सर देखने में आता है कि विद्यालयों में मातृभाषा के अध्ययन-अध्यापन पर अपेक्षित बल नहीं दिया जाता। अध्यापकों की सारी षक्ति विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों के शिक्षण पर केन्द्रित रहती है। भाषा पर पूर्ण अधिकार न होने के कारण बालकों में इन विषयों की सूझ-बूझ भी अधूरी ही रह जाती है। इसके लिए आवश्यक है कि मातृभाषा के अध्ययन-अध्यापन को शिक्षा का केंद्र बिन्दु मानकर चला जाए ताकि बालकों में भाषा-कौशलों का विकास हो सके तथा उनकी अभिव्यक्ति में स्पष्टता, ज्ञान में गंभीरता, कल्पना-शक्ति में मौलिकता और अंतःवृत्तियों में सजगता आए।
मातृभाषा का विद्यालयी पाठ्यचर्या में महत्वपूर्ण स्थान है। यह विद्यालय में पढ़ाया जाने वाला एक विषय मात्र ही नहीं, अन्य विषयों को सीखने का माध्यम भी है। भाषा के माध्यम से जो मूलभूत कौशल अर्जित किए जाते हैं वे अन्य विषय क्षेत्रों की संकल्पनाओं को समझने-सीखने में भी सहायता करते हैं। अक्सर देखा गया है कि जिस बालक में मातृभाषा की पकड़ जितनी अधिक होती है वह उतनी सरलता और शीघ्रता से अन्य विषयों का ज्ञानार्जन कर लेता है। इस दृष्टि से यह उपयुक्त है कि जिस भाषा में बालक बोलता, सोचता और कल्पना करता है वही भाषा उसकी शिक्षा का माध्यम भी हो ताकि अध्ययन किए जाने वाले विषयों को सही ढंग से समझने, उन पर स्वतंत्र रूप से चिंतन करने तथा उन्हें स्पष्ट और प्रभावी रूप से अभिव्यक्त करने में आसानी हो। इसी कारण सभी शिक्षाविदों ने इस बात पर बल दिया है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए। परन्तु अक्सर देखने में आता है कि विद्यालयों में मातृभाषा के अध्ययन-अध्यापन पर अपेक्षित बल नहीं दिया जाता। अध्यापकों की सारी षक्ति विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों के शिक्षण पर केन्द्रित रहती है। भाषा पर पूर्ण अधिकार न होने के कारण बालकों में इन विषयों की सूझ-बूझ भी अधूरी ही रह जाती है। इसके लिए आवश्यक है कि मातृभाषा के अध्ययन-अध्यापन को शिक्षा का केंद्र बिन्दु मानकर चला जाए ताकि बालकों में भाषा-कौशलों का विकास हो सके तथा उनकी अभिव्यक्ति में स्पष्टता, ज्ञान में गंभीरता, कल्पना-शक्ति में मौलिकता और अंतःवृत्तियों में सजगता आए।
97. अनुच्छेद के अनुसार, ‘ज्ञानार्जन’ शब्द का विग्रह होगा:
1. ज्ञान से अर्जन
2. ज्ञान का अर्जन
3. ज्ञान में अर्जन
4. ज्ञान के लिए अर्जन
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Answer – (2)