Part – IV Sanskrit (Language II)
(Official Answer Key)
परीक्षा (Exam) – CTET Paper 2 Elementary Stage (Class VI to VIII)
भाग (Part) – Part – IV Language II Sanskrit (संस्कृत)
परीक्षा आयोजक (Organized) – CBSE
कुल प्रश्न (Number of Question) – 30
परीक्षा तिथि (Exam Date) – 28th December 2021
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अधोलिखितेषु गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेभ्य: उचिततमम् उत्तरं चित्वा लिखत–
कृष्णमूर्ति: श्रीकण्ठश्च मित्रे आस्ताम्। श्रीकण्ठस्य पिता समृद्ध: आसीत्। अत: तस्य भवने सर्वविधानि सुख-साधनानि आसन्। परं कृष्णमूर्ते: माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती। तस्य गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत् ।
एकदा श्रीकण्ठ: तेन सह प्रात: नववादने तस्य गृहम् अगच्छत् । तत्र कृष्णमूर्ति: तस्य माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठ: अकथयत् ‘‘-मित्र! अहं भवता सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दु:खं यत् तव गृहे तु बहव: कर्मकरा: सन्ति।’’ तदा कृष्णमूर्ति: अवदत् ‘‘- मित्र! ममापि अष्टौ कर्मकरा: सन्ति। ते च द्वौ पादौ, द्वे हस्तौ, द्वे नेत्रे, द्वे श्रोत्रे इति। एते प्रतिक्षणं मम सहायका:। किन्तु तव भृत्या: सदैव सर्वत्र च उपस्थिता: भवितुं न शक्नुवन्ति। त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीन:। यदा यदा ते अनुपस्थिता:, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि। स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति।’’
श्रीकण्ठ: अवदत् – ‘‘मित्र! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता। अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।’’ भवतु, सार्धद्वादशवादनमिदम्। साम्प्रतं गृहं चलामि।
गद्यांश का अर्थ हिन्दी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंकृष्णमूर्ति: श्रीकण्ठश्च मित्रे आस्ताम्। श्रीकण्ठस्य पिता समृद्ध: आसीत्। अत: तस्य भवने सर्वविधानि सुख-साधनानि आसन्। परं कृष्णमूर्ते: माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती। तस्य गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत् ।
एकदा श्रीकण्ठ: तेन सह प्रात: नववादने तस्य गृहम् अगच्छत् । तत्र कृष्णमूर्ति: तस्य माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठ: अकथयत् ‘‘-मित्र! अहं भवता सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दु:खं यत् तव गृहे तु बहव: कर्मकरा: सन्ति।’’ तदा कृष्णमूर्ति: अवदत् ‘‘- मित्र! ममापि अष्टौ कर्मकरा: सन्ति। ते च द्वौ पादौ, द्वे हस्तौ, द्वे नेत्रे, द्वे श्रोत्रे इति। एते प्रतिक्षणं मम सहायका:। किन्तु तव भृत्या: सदैव सर्वत्र च उपस्थिता: भवितुं न शक्नुवन्ति। त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीन:। यदा यदा ते अनुपस्थिता:, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि। स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति।’’
श्रीकण्ठ: अवदत् – ‘‘मित्र! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता। अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।’’ भवतु, सार्धद्वादशवादनमिदम्। साम्प्रतं गृहं चलामि।
कृष्णमूर्ति और श्रीकंठ दोस्त थे। श्रीकंठ के पिता संपन्न थे। इसलिए उसके घर में हर तरह की सुख-सुविधाएँ थी। हालाँकि, कृष्णमूर्ति के माता-पिता एक गरीब किसान दंपति थे। उनका घर सुख-सुविधाविरहित और सरल था।
एक बार श्रीकंठ उसके साथ सुबह नौ बजे उसके घर गया। वहाँ कृष्णमूर्ति और उसके माता-पिता ने अपने बल पर श्रीकंठ का आतिथ्य किया। यह देखकर श्रीकंठ ने कहा, “मित्र! मैं आपके आतिथ्य से संतुष्ट हूं। मेरा एकमात्र खेद यह है कि तुम्हारे घर में कई नौकर नहीं हैं। तब कृष्णमूर्ति ने कहा, “मित्र। मेरे भी आठ दास हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो आंखें, दो कान हैं। ये हर पल मेरे सहायक हैं। लेकिन तुम्हारे सेवक हमेशा और हर जगह मौजूद नहीं हो सकते। लेकिन काम के लिए तुम नौकर के अधीन हैं । जब भी वे अनुपस्थित होते हैं, तो तुम्हेंं बार-बार दर्द होता है। लेकिन आत्मनिर्भरता के साथ हमेशा खुशी होती है, दर्द कभी नहीं।”
श्रीकंठ ने कहा, “दोस्त! मैं तुम्हारी बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हूं। अब मैं भी अपना काम करना चाहता हूं। शायद, साढ़े बारह बज रहे हैं। मैं इस समय एक घर चला रहा हूं।
एक बार श्रीकंठ उसके साथ सुबह नौ बजे उसके घर गया। वहाँ कृष्णमूर्ति और उसके माता-पिता ने अपने बल पर श्रीकंठ का आतिथ्य किया। यह देखकर श्रीकंठ ने कहा, “मित्र! मैं आपके आतिथ्य से संतुष्ट हूं। मेरा एकमात्र खेद यह है कि तुम्हारे घर में कई नौकर नहीं हैं। तब कृष्णमूर्ति ने कहा, “मित्र। मेरे भी आठ दास हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो आंखें, दो कान हैं। ये हर पल मेरे सहायक हैं। लेकिन तुम्हारे सेवक हमेशा और हर जगह मौजूद नहीं हो सकते। लेकिन काम के लिए तुम नौकर के अधीन हैं । जब भी वे अनुपस्थित होते हैं, तो तुम्हेंं बार-बार दर्द होता है। लेकिन आत्मनिर्भरता के साथ हमेशा खुशी होती है, दर्द कभी नहीं।”
श्रीकंठ ने कहा, “दोस्त! मैं तुम्हारी बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हूं। अब मैं भी अपना काम करना चाहता हूं। शायद, साढ़े बारह बज रहे हैं। मैं इस समय एक घर चला रहा हूं।
121. कस्य पिता निर्धन: आसीत्?
1. कृष्णमूर्ते:
2. राममूर्ते:
3. श्रीवत्सस्य
4. श्रीकण्ठस्य
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Answer -(1)
कृष्णमूर्ति के पिता निर्धन थे।
कृष्णमूर्ति के पिता निर्धन थे।