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अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेभ्य: उचिततमम् उत्तरं चित्वा लिखत–
नकुल: प्रतिदिनं प्रात: स्यूतकमादाय महाविद्यालयं गच्छति, सायंकाले च कदा आगमिष्यति इति तु अनिश्चितम् एव। पितरौ एतत्सर्वं दृष्ट्वा आहतौ भवत:। पुत्रं बोधयितुच प्रयत्नम् अकुरुताम् परं नकुल: किमपि न शृणोति। एकदा पुत्रं प्रबोधयन्ती माता रुदती वदति यत् धिङ् मम जीवितम्, यस्यां सूनुरपि अविश्वसिति, मनोगतं भावमेव न ज्ञापयति।
मातु: एतादृशेन व्यवहारेण साश्रुनयन: पुत्र: वदतिमात:! अद्यत्वे मम मित्राणि मां मद्यपानाय प्रेरयन्ति। तै: सह अहमपि सानन्दं मद्यपानं धूमपानमपि च करोमि खाद्याखाद्यं च खादामि। बहुधा मित्राणि प्रति न’ इति वक्तुमिच्छामि परमसमर्थ: एवात्मानं पश्यामि मित्रतावशात् । मात:! कर्तव्याकर्तव्यमपि विस्मृतं मया। दर्शय मां सन्मार्गम् । एवंभूतं पुत्रं स्नेहेन लालयन्ती माता तमबोधयत् यत्-त्यज् दुर्जनसंसर्गम्, समानशीलव्यसनेषु चैव सख्यं करणीयमिति’। मातु: वात्सल्यमयेन बोधनेन नकुल: दुर्जनसंसर्गं त्यक्तुं दृढ़निश्चयं करोति।
नकुल: प्रतिदिनं प्रात: स्यूतकमादाय महाविद्यालयं गच्छति, सायंकाले च कदा आगमिष्यति इति तु अनिश्चितम् एव। पितरौ एतत्सर्वं दृष्ट्वा आहतौ भवत:। पुत्रं बोधयितुच प्रयत्नम् अकुरुताम् परं नकुल: किमपि न शृणोति। एकदा पुत्रं प्रबोधयन्ती माता रुदती वदति यत् धिङ् मम जीवितम्, यस्यां सूनुरपि अविश्वसिति, मनोगतं भावमेव न ज्ञापयति।
मातु: एतादृशेन व्यवहारेण साश्रुनयन: पुत्र: वदतिमात:! अद्यत्वे मम मित्राणि मां मद्यपानाय प्रेरयन्ति। तै: सह अहमपि सानन्दं मद्यपानं धूमपानमपि च करोमि खाद्याखाद्यं च खादामि। बहुधा मित्राणि प्रति न’ इति वक्तुमिच्छामि परमसमर्थ: एवात्मानं पश्यामि मित्रतावशात् । मात:! कर्तव्याकर्तव्यमपि विस्मृतं मया। दर्शय मां सन्मार्गम् । एवंभूतं पुत्रं स्नेहेन लालयन्ती माता तमबोधयत् यत्-त्यज् दुर्जनसंसर्गम्, समानशीलव्यसनेषु चैव सख्यं करणीयमिति’। मातु: वात्सल्यमयेन बोधनेन नकुल: दुर्जनसंसर्गं त्यक्तुं दृढ़निश्चयं करोति।
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नकुल रोज सुबह अपना थैला लेकर महाविद्यालय में जाता है और शाम को कब लौटेगा यह निश्चित नहीं है। यह सब देखकर मातापिता दुख में हैं। उन्होंने अपने बेटे को बोध देने की कोशिश की लेकिन नकुल ने कुछ नहीं सुना। एक बार अपने बेटे को जगाते हुए माँ रोते हुए कहती है, “मेरे जीवन का धिक्कार है, जिसका बेटा भी नहीं मानता, और अपनी भावनाओं को व्यक्त भी नहीं करता।”
अपनी माँ के इस तरह के व्यवहार से अश्रुपूर्ण आँखोंं से पुत्र कहता है, “माँ! इन दिनों मेरे दोस्त मुझे शराब पीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मैं उनके साथ पीता हूँ और धूम्रपान करता हूँ और मजे से खाना खाता हूँ। अक्सर दोस्तों से मैं नहीं’यह कहना चाहता हूँ, परंतु खुद को दोस्ती की वजह से असक्षम समझता हूँ। माता! मैं भूल गया हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मुझे सही रास्ता दिखाओ। इस के बाद पुत्र को स्नेह से लालन करके माता ने उसे दुष्ट पुरुषों से संगति त्यागने और समान चरित्र और व्यसन वाले लोगों से मित्रता करने की शिक्षा दी। अपनी माँ की स्नेहपूर्ण सलाह से नकुल ने बुरे लोगों के साथ संगति करना बंद करने का निश्चय किया।
अपनी माँ के इस तरह के व्यवहार से अश्रुपूर्ण आँखोंं से पुत्र कहता है, “माँ! इन दिनों मेरे दोस्त मुझे शराब पीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मैं उनके साथ पीता हूँ और धूम्रपान करता हूँ और मजे से खाना खाता हूँ। अक्सर दोस्तों से मैं नहीं’यह कहना चाहता हूँ, परंतु खुद को दोस्ती की वजह से असक्षम समझता हूँ। माता! मैं भूल गया हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मुझे सही रास्ता दिखाओ। इस के बाद पुत्र को स्नेह से लालन करके माता ने उसे दुष्ट पुरुषों से संगति त्यागने और समान चरित्र और व्यसन वाले लोगों से मित्रता करने की शिक्षा दी। अपनी माँ की स्नेहपूर्ण सलाह से नकुल ने बुरे लोगों के साथ संगति करना बंद करने का निश्चय किया।
129. कौ आहतौ भवत:?
1. मित्रे
2. पितरौ
3. अध्यापकौ
4. गुरू
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Answer – (2)
माता और पिता दोनों आहत (दु:खी) हुए।
माता और पिता दोनों आहत (दु:खी) हुए।