Part – IV Sanskrit (Language II)
(Official Answer Key)
परीक्षा (Exam) – CTET Paper 2 Elementary Stage (Class VI to VIII)
भाग (Part) – Part – IV Language II Sanskrit (संस्कृत)
परीक्षा आयोजक (Organized) – CBSE
कुल प्रश्न (Number of Question) – 30
परीक्षा तिथि (Exam Date) – 27th December 2021
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निम्नलिखितं गद्यांशं पठित्वा अष्टप्रश्नानां समीचीनं विकल्पं चित्वा उत्तराणि देयानि-
अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम् सर:। तत्र संकटविकटौ हंसौ निवसत:। कम्बुग्रीवनामक: तयो: मित्रम् एक: कूर्म: अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
अथ एकदा धीवरा: तत्र आगच्छन् । ते अकथयन् – ‘‘वयं श्व: मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्याम:’’। एतत् श्रुत्वा कूर्म: अवदत् – ‘‘मित्रे! किं युवाभ्यां धीवराणां वार्ता श्रुता ? हंसौ अवदताम् – ‘‘प्रात: यद् उचितम् तद् कत्र्तव्यम्’’ अधुना किम् अहं करोमि?’’ कूर्म: अवदत् – ‘‘अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।’’
हंसौ अवदताम् – ‘‘अत्र क: उपाय:?’’ कच्छप: वदति- ‘‘युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धारयताम् । अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयो: पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।’’ हंसौ अकथयताम् – ‘‘सम्भवति एष: उपाय:। किन्तु अत्र एक: अपायोऽपि वर्तते। आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जना: किचिद् वदिष्यन्ति एव। यदि त्वमुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम् । अत: त्वम् अत्रैव वस।’’ तत् श्रुत्वा क्रुद्ध: कूर्म: अवदत् – ‘‘किमहं मूर्ख:? उत्तरं न दास्यामि। किचिदपि न वदिष्यामि।’’ अत: अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्।
एवं काष्ठदण्डं लम्बमानं कूर्मं गोपालका: अपश्यन्। पश्चाद् धावन् अवदन् च – ‘‘हं हो! महदाश्चर्यम् । हंसाभ्यां सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।’’ कश्चिद् वदति- ‘‘यद्ययं कूर्म: कथमपि निपतति तथा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।’’ अपर: अवदत्-‘‘सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि’’। अन्य: अकथयत्-‘‘गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि’’ इति। तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्म: क्रुद्ध: जात:। मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य स: अवदत् – ‘‘यूयं भस्म खादत।’’ तत्क्षणमेव कूर्म: दण्डात् भूमौ पतित:। गोपालकै: स: मारित:। अत एवोक्तम् –
सुहृदां हितकामनां वाक्यं यो नाभिनन्दति। स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठात् भ्रष्टो विनश्यति।।
गद्यांश का अर्थ हिन्दी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करेंअस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम् सर:। तत्र संकटविकटौ हंसौ निवसत:। कम्बुग्रीवनामक: तयो: मित्रम् एक: कूर्म: अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।
अथ एकदा धीवरा: तत्र आगच्छन् । ते अकथयन् – ‘‘वयं श्व: मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्याम:’’। एतत् श्रुत्वा कूर्म: अवदत् – ‘‘मित्रे! किं युवाभ्यां धीवराणां वार्ता श्रुता ? हंसौ अवदताम् – ‘‘प्रात: यद् उचितम् तद् कत्र्तव्यम्’’ अधुना किम् अहं करोमि?’’ कूर्म: अवदत् – ‘‘अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।’’
हंसौ अवदताम् – ‘‘अत्र क: उपाय:?’’ कच्छप: वदति- ‘‘युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धारयताम् । अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयो: पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।’’ हंसौ अकथयताम् – ‘‘सम्भवति एष: उपाय:। किन्तु अत्र एक: अपायोऽपि वर्तते। आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जना: किचिद् वदिष्यन्ति एव। यदि त्वमुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम् । अत: त्वम् अत्रैव वस।’’ तत् श्रुत्वा क्रुद्ध: कूर्म: अवदत् – ‘‘किमहं मूर्ख:? उत्तरं न दास्यामि। किचिदपि न वदिष्यामि।’’ अत: अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्।
एवं काष्ठदण्डं लम्बमानं कूर्मं गोपालका: अपश्यन्। पश्चाद् धावन् अवदन् च – ‘‘हं हो! महदाश्चर्यम् । हंसाभ्यां सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।’’ कश्चिद् वदति- ‘‘यद्ययं कूर्म: कथमपि निपतति तथा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।’’ अपर: अवदत्-‘‘सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि’’। अन्य: अकथयत्-‘‘गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि’’ इति। तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्म: क्रुद्ध: जात:। मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य स: अवदत् – ‘‘यूयं भस्म खादत।’’ तत्क्षणमेव कूर्म: दण्डात् भूमौ पतित:। गोपालकै: स: मारित:। अत एवोक्तम् –
सुहृदां हितकामनां वाक्यं यो नाभिनन्दति। स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठात् भ्रष्टो विनश्यति।।
मगधदेश में ‘फुल्लोत्पल’ नाम का एक तालाब है। उसमें ‘संकट’ और ‘विकट’ नाम वाले दो हंस निवास करते हैं। ‘कम्बुग्रीव’ नाम वाला उन दोनों का मित्र एक कछुआ भी वहाँ ही रहता था।
एक बार मछुआरे वहाँ आ गए और उन्हों ने कहा, “हम कल मछली, कछुआ आदि को मारेंगे।” यह सुनकर कछुए ने कहा -“मित्रों, क्या तुम दोनों ने इन मछुआरों की बातचीत सुनी अब मैं क्या करूँ?” दोनों हंसों ने कहा, “प्रातः जो उचित हो, वही कर लेना चाहिए।” कछुए ने कहा-“ऐसा नहीं; जिस प्रकार मैं दूसरे तालाब में जा सकूँ, वैसा (उपाय) करो।” दोनों हंसों ने कहा-“हम दोनों क्या करें?” कछुए ने कहा- “मैं आप दोनों के साथ आकाशमार्ग से दूसरी जगह जाना चाहता हूँ।”
दोनों हंसों ने कहा, “इसका क्या उपाय है? कछुआ बोला-“तुम दोनों एक लकड़ी के डण्डे को चोंच से पकड़ लेना। मैं लकड़ी के डण्डे के बीच में लटककर तुम दोनों के पंखों के बल से सुखपूर्वक चला जाऊँगा।” दोनों हंसों ने कहा-“यह उपाय संभव है। किन्तु इसमें एक हानि भी है। हमारे द्वारा तुम्हें ले जाते हुए देखकर लोग कुछ तो बोलेंगे ही। यदि तुम उत्तर दोगे तब तेरा मरना निश्चित है। अतः तू यहीं रह।” यह सुनकर क्रोधित कछुए ने कहा”क्या मैं मूर्ख हूँ ? मैं उत्तर नहीं दूंगा। कुछ भी नहीं बोलूँगा। इसीलिए मैंने जैसा कहा है, तुम दोनों वैसा ही करो।”
इस प्रकार बनाए गए लकड़ी के डण्डे पर लटकते हुए कछुए को देखकर ग्वाले पीछे-पीछे दौड़े और बोले-“अरेरे ! बड़ा आश्चर्य है। दो हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।” कोई कहता है-“यदि यह कछुआ किसी प्रकार भी नीचे गिर पड़ता है, तब वहीं पकाकर खा जाऊँ।” दूसरे ने कहा-“तालाब के किनारे भूनकर खाऊँगा” एक ने कहा “घर ले जाकर खाऊँगा।” उन (ग्वालों) के वचन सुनकर कछुआ दोनों मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर क्रोधपूर्वक बोला”तुम सब भस्म खाओ।” यह बोलते ही कछुआ आकाश से (धरती पर) गिर पड़ा और ग्वालों द्वारा मार दिया गया। इसलिए ही कहा गया है –
जो व्यक्ति हित चाहने वाले मित्रों की बात को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है, वह दुष्टबुद्धि वाले कछुए की भांति लकड़ी से गिरकर नष्ट हो जाता है।
एक बार मछुआरे वहाँ आ गए और उन्हों ने कहा, “हम कल मछली, कछुआ आदि को मारेंगे।” यह सुनकर कछुए ने कहा -“मित्रों, क्या तुम दोनों ने इन मछुआरों की बातचीत सुनी अब मैं क्या करूँ?” दोनों हंसों ने कहा, “प्रातः जो उचित हो, वही कर लेना चाहिए।” कछुए ने कहा-“ऐसा नहीं; जिस प्रकार मैं दूसरे तालाब में जा सकूँ, वैसा (उपाय) करो।” दोनों हंसों ने कहा-“हम दोनों क्या करें?” कछुए ने कहा- “मैं आप दोनों के साथ आकाशमार्ग से दूसरी जगह जाना चाहता हूँ।”
दोनों हंसों ने कहा, “इसका क्या उपाय है? कछुआ बोला-“तुम दोनों एक लकड़ी के डण्डे को चोंच से पकड़ लेना। मैं लकड़ी के डण्डे के बीच में लटककर तुम दोनों के पंखों के बल से सुखपूर्वक चला जाऊँगा।” दोनों हंसों ने कहा-“यह उपाय संभव है। किन्तु इसमें एक हानि भी है। हमारे द्वारा तुम्हें ले जाते हुए देखकर लोग कुछ तो बोलेंगे ही। यदि तुम उत्तर दोगे तब तेरा मरना निश्चित है। अतः तू यहीं रह।” यह सुनकर क्रोधित कछुए ने कहा”क्या मैं मूर्ख हूँ ? मैं उत्तर नहीं दूंगा। कुछ भी नहीं बोलूँगा। इसीलिए मैंने जैसा कहा है, तुम दोनों वैसा ही करो।”
इस प्रकार बनाए गए लकड़ी के डण्डे पर लटकते हुए कछुए को देखकर ग्वाले पीछे-पीछे दौड़े और बोले-“अरेरे ! बड़ा आश्चर्य है। दो हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।” कोई कहता है-“यदि यह कछुआ किसी प्रकार भी नीचे गिर पड़ता है, तब वहीं पकाकर खा जाऊँ।” दूसरे ने कहा-“तालाब के किनारे भूनकर खाऊँगा” एक ने कहा “घर ले जाकर खाऊँगा।” उन (ग्वालों) के वचन सुनकर कछुआ दोनों मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर क्रोधपूर्वक बोला”तुम सब भस्म खाओ।” यह बोलते ही कछुआ आकाश से (धरती पर) गिर पड़ा और ग्वालों द्वारा मार दिया गया। इसलिए ही कहा गया है –
जो व्यक्ति हित चाहने वाले मित्रों की बात को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है, वह दुष्टबुद्धि वाले कछुए की भांति लकड़ी से गिरकर नष्ट हो जाता है।
121. अनया कथया क: सन्देश: गृह्यते ?
1. अनुचित: उपाय: न कर्तव्य:।
2. उपायेन सह अपाय: अपि विचारितव्य:।
3. हितकराणां मित्राणां परामर्श: न उपेक्षितव्य:।
4. मूर्खेभ्य: परामर्श: न दातव्य:।
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Answer – (3)
इस कथा से यह सन्देश मिलता है कि हितकारी मित्रों के परामर्श की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। गृह् (ग्रहण करना) आत्मनेपदी लट् लकार एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष गृह्यते गृह्येते गृह्यन्ते मध्यम पुरुष गृह्यसे गृह्येथे गृह्यध्वे उत्तम पुरुष गृह्ये गृह्यावहे गृह्यामहे
इस कथा से यह सन्देश मिलता है कि हितकारी मित्रों के परामर्श की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। गृह् (ग्रहण करना) आत्मनेपदी लट् लकार एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथम पुरुष गृह्यते गृह्येते गृह्यन्ते मध्यम पुरुष गृह्यसे गृह्येथे गृह्यध्वे उत्तम पुरुष गृह्ये गृह्यावहे गृह्यामहे