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विश्व में बहुत से ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने असफल होने के बावजूद हार नहीं मानी और अंत में सफल हुए। विफलता से बेहतर कोई भी शिक्षक नहीं है। विफलता हमें यह सवाल करने का मौका देती है कि मुझसे क्या गलत हुआ है? जीत-हार जीवन की क्रियाएँ हैं। इसे जीवन बना देना गलत है। एक क्रिया को माथे पर जगह देना और दूसरी को खारिज कर देना गलत है। जीवन का आनंद, आनंद का जीवन इसी में निहित है कि बाह्य जीवन और आंतरिक जीवन की सुसंगतता ही कर्मक्षेत्र के मूल में हो। भौतिक उपलब्धियों का ढेर अंतस के खाली होने की कीमत पर भी हो सकता है। हार इच्छा में शामिल नहीं है पर लोक कल्याण पर कोई सकारात्मक हस्तक्षेप न होता हो तो जीत के लिए अपना सबकुछ दाँव पर लगा देना भी उचित नहीं। सफलता और प्रगति जैसे शब्दों के नए अर्थ तय करने होंगे।
विश्व में बहुत से ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने असफल होने के बावजूद हार नहीं मानी और अंत में सफल हुए। विफलता से बेहतर कोई भी शिक्षक नहीं है। विफलता हमें यह सवाल करने का मौका देती है कि मुझसे क्या गलत हुआ है? जीत-हार जीवन की क्रियाएँ हैं। इसे जीवन बना देना गलत है। एक क्रिया को माथे पर जगह देना और दूसरी को खारिज कर देना गलत है। जीवन का आनंद, आनंद का जीवन इसी में निहित है कि बाह्य जीवन और आंतरिक जीवन की सुसंगतता ही कर्मक्षेत्र के मूल में हो। भौतिक उपलब्धियों का ढेर अंतस के खाली होने की कीमत पर भी हो सकता है। हार इच्छा में शामिल नहीं है पर लोक कल्याण पर कोई सकारात्मक हस्तक्षेप न होता हो तो जीत के लिए अपना सबकुछ दाँव पर लगा देना भी उचित नहीं। सफलता और प्रगति जैसे शब्दों के नए अर्थ तय करने होंगे।
94. ‘‘एक क्रिया को माथे पर जगह देना और दूसरी को खारिज कर देना गलत है।’’ रेखांकित से आशय है-
1. असफलताओं को अस्वीकृत कर देना गलत है।
2. दूसरी हार को अमान्य कर देना चाहिए।
3. हार का सदैव बहिष्कार करना चाहिए।
4. असफलताएं जीवन में आती रहती हैं।
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Answer -(1)