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निम्नलिखितं गद्यांशं पठित्वा सप्तप्रश्नानां उचितं विकल्पं चित्वा उत्तराणि दातव्यानि। एकस्मिन् नदीतीरे एक: जम्बूवृक्ष: आसीत् । तस्मिन् एक: वानर: प्रतिवसति स्म। स: नित्यं तस्य फलानि खादति स्म। कश्चित् मकरोऽपि तस्यां नद्यामवसत् । वानर: प्रतिदिनं तस्मै जम्बूफलान्यच्छत् । तेन प्रीत: मकर: तस्य वानरस्य मित्रमभवत् । एकदा मकर: कानिचित् जम्बूफलानि पत्न्यै अपि दातुं आनयत् । तानि खादित्वा तस्य जाया अचिन्तयत् अहो! य: प्रतिदिनमीदृशानि मधुराणि फलानि खादति नूनं तस्य हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति। सा पतिमकथयत् – ‘भो:! जम्बूभक्षकस्य तव मित्रस्य हृदयमपि जम्बूवत् मधुरं भविष्यति। अहं तदेव खादितुमिच्छामि। तस्य हृदयभक्षणे मम बलवती स्पृहा। यदि मां जीवितां द्रष्टुमिच्छसि तर्हि आनय शीघ्रं तस्य वानरस्य हृदयम्’। पत्न्या: हठात् विवश: मकर: नदीतीरे गत्वा वानरमवदत् – ‘बन्धो! तव भ्रातृजाया त्वां द्रष्टुमिच्छति। अत: मम गृहमागच्छ’। वानर: अपृच्छत् – ‘कुत्र ते गृहम् ? कथमहं तत्र गन्तं शक्नोमि ?’ मकर: अवदत् – ‘अलं चिन्तया। अहं त्वां स्वपृष्ठे धृत्वा गृहं नेष्यामि’। तस्य वचनं श्रुत्वा विश्वस्त: वानर: तस्मात् वृक्षस्कन्धात् अवतीर्य मकरपृष्ठे उपाविशत् । नदीजले वानरं विवशं मत्वा मकर: अकथयत् – ‘मम पत्नी तव हृदयं खादितुमिच्छति। तस्यै तव हृदयं दातुमेव त्वां नयामि।’ चतुर: वानर: शीघ्रमकथयत् –‘अरे मूर्ख! कथं न पूर्वमेव निवेदितं त्वया? मम हृदयं तु वृक्षस्य कोटरे एव निहितम्। अत: शीघ्रं तत्रैव नय येन अहम् स्वहृदयमानीय भ्रातृजायायै दत्त्वा तां परितोषयामि इति।’ मूर्ख: मकर: तस्य गूढमाशयं अबुद्ध्वा वानरं पुनस्तमेव वृक्षमनयत् । तत: वृक्षमारुह्य वानर: अवदत् – ‘धिङ् मूर्ख! अपि हृदयं शरीरात् पृथक तिष्ठति ? गच्छ, अत: परं त्वया सह मम मैत्री समाप्ता, सत्यमुक्तं केनचित् कविना विश्वासो हि ययोर्मध्ये तयोर्मध्येऽस्ति सौहृदम्। यस्मिन्नैवास्ति विश्वास: तस्मिन् मैत्री क्व सम्भवा।।
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एक नदी के किनारे एक जामुन का पेड़ था। उस पर एक वानर रहा करता था। वह प्रतिदिन जामुन के फल खाया करता था। कोई मगरमच्छ उसका मित्र था। वह बन्दर प्रतिदिन उसको जामुन के फल दिया करता था। अत: वह मगरमच्छ उस बन्दर का प्रिय मित्र बन गया।
एक दिन मगरमच्छ ने कुछ जामुन के फल अपनी पत्नी को दिये। उन्हें खाकर उसकी पत्नी ने सोचा, “अहो! वह बन्दर प्रतिदिन मीठे जामुन के फल खाता है। अतः अवश्य ही उसका हृदय भी अति मधुर होगा।” वह अपने पति से बोली, “अरे, प्रतिदिन मधुर जामुन के फल खाकर आपके वानर-मित्र का हृदय कितना मधुर होगा ? उसके हृदय को खाकर मेरा हृदय भी अति मधुर हो जायेगा। इसलिए यदि मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो शीघ्र ही उस बन्दर के हृदय को लाओ।”
मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अनेक प्रकार से रोका (इन्कार किया) परन्तु वह पक्के निश्चय वाली थी। विवश हुआ मगरमच्छ अपने मित्र बन्दर के पास जाकर बोला, “हे मित्र, प्रतिदिन मैं ही यहाँ आया करता हूँ। आज तुम मेरे घर आओ।”
बन्दर ने उत्तर दिया, “तुम तो जल में रहते हो, मैं वहाँ किस तरह जा सकता हूँ?”
मगरमच्छ बोला, “चिन्ता मत करो। तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”
जब वे दोनों नदी के मध्य भाग ठहर गये, तब मगरमच्छ बन्दर से बोला, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है। अतः तुमको घर ले चलता हूँ।”
मगरमच्छ के वचन से बन्दर भयभीत हो गया। किन्तु चतुर बन्दर शीघ्र बोला, “अरे मित्र ! मेरा हृदय तो वृक्ष के कोटर में रखा हुआ है। अतः तुम शीघ्र मुझे वहाँ ले चलो। मैं प्रसन्न मन से अपने हृदय को तुम्हें दे दूंगा। मगरमच्छ बन्दर को फिर से उसके निवास पर लेकर आया। चतुर बन्दर शीघ्र ही कूदकर वृक्ष के ऊपर चढ़ गया।”
बन्दर ऊँचे स्वर में हँसकर मगरमच्छ से बोला, “अरे मूर्ख! क्या हृदय कभी शरीर से अलग होता है? तुम मूर्ख हो। इससे आगे तुम्हारे साथ मेरी मित्रता समाप्त हो गई।”
ऐसा कहकर, बन्दर ने फिर मधुर (मीठे) जामुन के फल खाये।
“जिनके मध्य विश्वास है, उनके साथ ही मित्रता होती है। जिसमें विश्वास नहीं होता है, वहाँ (उसमें) मित्रता कैसे सम्भव है।”
एक दिन मगरमच्छ ने कुछ जामुन के फल अपनी पत्नी को दिये। उन्हें खाकर उसकी पत्नी ने सोचा, “अहो! वह बन्दर प्रतिदिन मीठे जामुन के फल खाता है। अतः अवश्य ही उसका हृदय भी अति मधुर होगा।” वह अपने पति से बोली, “अरे, प्रतिदिन मधुर जामुन के फल खाकर आपके वानर-मित्र का हृदय कितना मधुर होगा ? उसके हृदय को खाकर मेरा हृदय भी अति मधुर हो जायेगा। इसलिए यदि मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो शीघ्र ही उस बन्दर के हृदय को लाओ।”
मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को अनेक प्रकार से रोका (इन्कार किया) परन्तु वह पक्के निश्चय वाली थी। विवश हुआ मगरमच्छ अपने मित्र बन्दर के पास जाकर बोला, “हे मित्र, प्रतिदिन मैं ही यहाँ आया करता हूँ। आज तुम मेरे घर आओ।”
बन्दर ने उत्तर दिया, “तुम तो जल में रहते हो, मैं वहाँ किस तरह जा सकता हूँ?”
मगरमच्छ बोला, “चिन्ता मत करो। तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”
जब वे दोनों नदी के मध्य भाग ठहर गये, तब मगरमच्छ बन्दर से बोला, “मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है। अतः तुमको घर ले चलता हूँ।”
मगरमच्छ के वचन से बन्दर भयभीत हो गया। किन्तु चतुर बन्दर शीघ्र बोला, “अरे मित्र ! मेरा हृदय तो वृक्ष के कोटर में रखा हुआ है। अतः तुम शीघ्र मुझे वहाँ ले चलो। मैं प्रसन्न मन से अपने हृदय को तुम्हें दे दूंगा। मगरमच्छ बन्दर को फिर से उसके निवास पर लेकर आया। चतुर बन्दर शीघ्र ही कूदकर वृक्ष के ऊपर चढ़ गया।”
बन्दर ऊँचे स्वर में हँसकर मगरमच्छ से बोला, “अरे मूर्ख! क्या हृदय कभी शरीर से अलग होता है? तुम मूर्ख हो। इससे आगे तुम्हारे साथ मेरी मित्रता समाप्त हो गई।”
ऐसा कहकर, बन्दर ने फिर मधुर (मीठे) जामुन के फल खाये।
“जिनके मध्य विश्वास है, उनके साथ ही मित्रता होती है। जिसमें विश्वास नहीं होता है, वहाँ (उसमें) मित्रता कैसे सम्भव है।”
129. वानर: कुत्र अवसत् ?
1. नदीतीरे
2. जम्बूवृक्षे
3. नदीजले
4. वृक्षस्य कोटरे
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Answer – (2)
बंदर जामुन के वृक्ष पर निवास करता था। गद्यांश में वर्णित बंदर (वानर:) शब्द का पर्यायवाची कपि:, कपीश:, मर्कट:, शाखामृग: आदि होते हैं।
बंदर जामुन के वृक्ष पर निवास करता था। गद्यांश में वर्णित बंदर (वानर:) शब्द का पर्यायवाची कपि:, कपीश:, मर्कट:, शाखामृग: आदि होते हैं।